कन्हैयालाल सहल के निबंध
भारतीय संतों की साधना
आज कहा जाता है कि विज्ञान गतिशील है और धर्म स्थितिशील है, किंतु कबीर का धर्म स्थितिशील नहीं था। वे पुरोगामी थे। भगवान् बुद्ध आदि ने संस्कृत को छोड़कर लोक-प्रचलित भाषा में उपदेश दिया था। कबीर ने भी इस तत्त्व को भली-भाँति समझा था। “संस्कृत कूप जल कबीरा,
सच्चा निबंध किसे कहें?
भोजन के बाद सोफा पर बैठकर सिगरेट के कश खींचते हुए जैसे कोई ज़िंदादिल मज़ेदार अनुभवी व्यक्ति अपने मनोरंजक अनुभव सुना रहा हो—कुछ-कुछ इसी तरह का है सच्चे निबंध का वातावरण। इसीलिए निबंध को ‘किसी मज़ेदार और बहुश्रुत व्यक्ति के भोजनोत्तर एकांत संभाषण’ की संज्ञा