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कैलाश वाजपेयी

1934 - 2015 | हमीरपुर, उत्तर प्रदेश

अकविता आंदोलन के समय उभरे हिंदी के प्रतिष्ठित कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

अकविता आंदोलन के समय उभरे हिंदी के प्रतिष्ठित कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

कैलाश वाजपेयी का परिचय

मूल नाम : कैलाश वाजपेयी

जन्म : 11/11/1934 | हमीरपुर, उत्तर प्रदेश

निधन : 01/04/2015

अकविता के दौर में ‘सन साठ के बाद की कविता’ धारा में प्रमुखता से चिह्नित कवियों में से एक कैलाश वाजपेयी का जन्म 11 नवंबर 1936 में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से वाचस्पति की उपाधि हासिल की और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कार्य किया। बाद में उन्होंने प्राध्यापन किया। दिल्ली दूरदर्शन के लिए उन्होंने कबीर, हरिदास स्वामी, सूरदास, जे। कृष्णमूर्ति, रामकृष्ण परमहंस और बुद्ध आदि के जीवन-दर्शन पर फ़िल्में बनाईं। वह‌ दूरदर्शन की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे।

कैलाश वाजपेयी की कविता-यात्रा का आरंभ एक गीतकार के रूप में हुआ था। उनके गीत कवि सम्मेलनों में अत्यंत लोकप्रिय हुए। बाद में वह ऐसे कवि के तौर पर सामने आए जो मोहभंग, असंतोष और विरक्ति की अभिव्यक्ति कर रहा था। इसी दौर में कैलाश वाजपेयी की एक कविता ‘राजधानी’ अत्यंत विवादित हुई, जिसपर संसद में हंगामा हुआ और इस कविता पर प्रतिबंध की माँग की गई। मंगलेश डबराल बताते हैं कि ‘‘इसी दशक में अकविता नामक काव्य आंदोलन भी शुरू हुआ जिसमें वैयक्तिक विद्रोह, परंपरा-भंजन और यौन-कुंठा की आवाज़े बहुत मुखर थीं। कैलाश वाजपेयी सीधे अकविता में शामिल नहीं हुए, लेकिन यह कहना सही होगा कि यौन-अभिव्यक्तियों को छोड़कर अकविता ने अपना भाषाई मुहावरा काफ़ी हद तक कैलाश वाजपेयी की कविता से हासिल किया था।’’  

कालांतर में कैलाश वाजपेयी की कविता का एक अन्य दौर आया जब वह भारतीय संत कवियों-संगीतकारों और तत्त्व-चिंतकों, जैन-बौद्धवाद, हीनयान संप्रदाय, अद्वैत और सूफ़ी दर्शन की ओर मुड़ गए और स्वयं अपनी एक दार्शनिकता के विकास का प्रयास किया। इस दौर में वह बौद्ध और सूफी चिंतन की बुनियाद पर एक निजी अध्यात्म की खोज करते रहे और धार्मिकता, उसके पाखंडों-कर्मकांडों, धर्म की राजनीति और सांप्रदायिकता के धुर विरोधी बने रहे।

‘संक्रांत’, ‘देहांत से हटकर’, ‘तीसरा अँधेरा’, ‘महास्वप्न का मध्यांतर’, ‘सूफ़ीनामा’, ‘पृथ्वी का कृष्णपक्ष’, ‘भविष्य घट रहा है’, ‘हवा में हस्ताक्षर’ उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। 

उन्हें ‘पृथ्वी का कृष्णपक्ष’ संग्रह के लिए 2002 के व्यास सम्मान और ‘हवा में हस्ताक्षर’ के लिए 2009 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

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