इलाचंद्र जोशी के निबंध
भावी साहित्य और संस्कृति
इधर कुछ वर्षों से देश में एक नई जाग्रति की लहर उठी है, संदेह नहीं। एक नूतन स्फूति, देश के स्नायु-तंतुओं में संचारित हुई है। पर इस उन्मीलन का स्वरूप मुख्यत: राजनीतिक है। यह आवश्यक अवश्य है, पर निगूढ़ शिक्षा और विशुद्ध संस्कृति से उसका तनिक भी संबंध नहीं
जन्मदिन
आज मेरा तिरेपनवाँ जन्म-दिन है। कुछ क्षणों के लिए पचास वर्ष की अवस्था के बाद अपने पिछले जीवन का लेखा-जोखा करने का सहज नैतिक अधिकार साधारणतः सभी व्यक्तियों को अनायास ही सुलभ हो जाता है। पर मेरी आत्मा अभी तक मुझे उस अधिकार के अयोग्य मानती है। फ़िर भी मेरे