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हरीराम व्यास

1510 - 1632 | ओरछा, मध्य प्रदेश

हरिवंश के शिष्य और राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित। ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के साथ ही तत्त्व-निरूपण के लिए स्मरणीय।

हरिवंश के शिष्य और राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित। ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के साथ ही तत्त्व-निरूपण के लिए स्मरणीय।

हरीराम व्यास की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 20

‘व्यास’ कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।

रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥

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‘व्यास’ बचन मीठे कहै, खरबूजा की भाँति।

ऊपर देखौ एक सौ, भीतर तीन्यों पाँति॥

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मुख मीठी बातें कहै, हिरदै निपट कठोर।

व्यास कहौं क्यों पाय हैं, नागर नंदकिसोर॥

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‘व्यास’ बड़ाई लोक की, कूकर की पहिचानि।

प्रीति करै मुख चाटही, बैर करै तनु-हानि॥

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‘व्यास’ मिठाई विप्र की, तामे लागै आगि।

बृंदाबन ते स्वपच की, जूठहि खैए माँगि॥

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पद 12

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