गोकुलनाथ का परिचय
रीतिकाल में प्रबंध और रीति ग्रंथ लिखने में समान सफलता प्राप्त करने वाले काशीनिवासी गोकुलनाथ का जन्म सन् 1763 ई. के आस-पास स्थिर किया जाता है। गोकुलनाथ ने अपने ग्रंथों में जो रचनाकाल दिया है, उसी के आधार पर उनकी जन्मतिथि का निर्णय किया गया है। वे हिंदी के प्रसिद्ध कवि रघुनाथ बंदीजन के पुत्र थे। उन्होंने काशीनरेश श्री उदितनारायण सिंह के आदर्श से महाभारत और हरिवंश का हिंदी अनुवाद अत्यंत सुंदरता के साथ किया। इस अनुवाद कार्य में उनका गोपीनाथ और मणिदेव ने भी साथ दिया था। यह एक सामूहिक प्रयत्न से संपादित साहित्यिक अनुष्ठान है जिसमें 50 वर्ष से भी अधिक समय लगा। कथा-प्रबंध का दो सहस्र पृष्ठों में व्यापक प्रयोग इससे पहले हिंदी में किसी ने नहीं किया। विविध छंदों में यह कार्य पूर्ण किया गया है। भाषा अत्यंत प्रांजल और काव्योचित है। दीर्घकाल तक तीनों कवि इस विशाल कथा-काव्य के अनुवाद में संलग्न रह कर इस अनुष्ठान को पूर्ण कर सके थे।
रामचंद्र शुक्ल के अनुसार उनके लिखे हुए आठ ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं : 'चेत चंद्रिका', 'राधा नखशिख', 'नाम रत्नमाला' (कोश), सीताराम गुणार्णव', 'राधा-कृष्णविलास', 'अमरकोष (भाषा)' और 'कवि मुखमंडल'। इस सूची को देखकर गोकुलनाथ की बहुमुखी प्रतिभा का पता चलता है। 'चेत चंद्रिका' अलंकार-ग्रंथ है। इसकी रचना सन् 1783 ई. से 1813 ई. के बीच महाराजा चेतसिंह के आश्रय में की थी। 'सीताराम गुणार्णव' आध्यात्म रामायण का अनुवाद है जिसमें पूरी रामकथा वर्णित है। 'कवि मुख-मंडल' भी अलंकार ग्रंथ है। इन ग्रंथों का रचनाकाल सन् 1783 से 1813 तक स्थिर किया गया है। रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में 'रीति ग्रंथ रचना और प्रबंध रचना दोनों में समान रूप से कुशल और दूसरा कवि रीतिकाल के भीतर नहीं पाया जाता।'