गिरिधारन का परिचय
जन्म :बनारस, उत्तर प्रदेश
निधन : बनारस, उत्तर प्रदेश
भारतेंदु हरीशचंद्र के पिता बाबू गोपालचंद्र ‘गिरिधरदास’ और ‘गिरिधारन’ उपनाम से ब्रजभाषा की कविता करते थे। इनका जन्म 1833 ई. को हुआ था। गोपालचंद्र काव्य-रसिक तथा विद्वान थे। इन्होंने अपने परिश्रम से संस्कृत और हिंदी में बड़ी स्थिर योग्यता प्राप्त की और अनमोल पुस्तकों का संग्रह किया। पुस्तकालय का नाम इन्होंने ‘सरस्वती भवन' रखा, अपने जमाने में जिसका मूल्य एक लाख रुपए लोग लगाते थे। इनकी मृत्य 1860 ई. में हुई।
गिरिधरदास ने 40 ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ ही प्राप्त हैं। इनमें मुख्य ये हैं : ‘जरासंधवध महाकाव्य’, ‘भारतीभूषण’, ‘बलराम कथामृत’, ‘बुद्धकथामृत’, ‘नहुष नाटक’, ‘वाल्मीकि रामायण’, और ‘छंदोंवर्णन’। इन रचनाओं के भावपक्ष पर भक्ति काव्य परंपरा और कलापक्ष पर रीतिकाव्य परंपरा का प्रभाव है। 'भारतीभूषण' अलकार ग्रंथ है। ‘नहुष नाटक' कुछ इतिहासकारों की दृष्टि में हिंदी भाषा का प्रथम नाटक है। इसका रचनाकाल सन् 1857 ई. है।