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देवराज उपाध्याय

देवराज उपाध्याय का परिचय

आपका जन्म बिहार प्रदेश के भोजपुर जनपद के बभनगावां नामक ग्राम में 23 अक्टूबर सन्‌ 1908 को हुआ था। आपने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, हिंदी तथा संस्कृत विषयों में एम०ए० की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत अध्यापन-कार्य प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ में आप राजस्थान के जोधपुर नगर के 'जसवंत कॉलेज' में हिंदी के प्रवक्‍ता नियुक्त हुए थे और बाद में पी-एच०डी० प्राप्त करने के उपरांत आप ‘उदयपुर विश्वविद्यालय' के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हो गए थे। आपके दो विवाह हुए थे। आपकी पहली पत्नी हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री पारसनाथ त्रिपाठी की सुपुत्री लीलावती देवी थी, जिनका देहावसान विवाह के थोड़े ही दिन बाद हो गया था। बाद में आपका दूसरा विवाह हिंदी तथा संस्कृत के प्रकांड विद्वान्‌ महामहोपाध्याय पंडित रामावतार शर्मा की द्वितीय पुत्री बसुमती के साथ हुआ था, जो हिंदी के ख्याति-प्राप्त समीक्षक श्री नलिन विलोचन शर्मा की बड़ी बहन थीं। श्रीमती वसुमती जी स्वयं भी विदुषी महिला थीं और लंबी अवधि तक राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में कार्यरत रहीं। 

डॉ० उपाध्याय सेवानिवृत्ति के उपरांत राजस्थान छोड़कर स्थायी रूप से आरा (बिहार) में रहने लगे थे। यद्यपि आपका अधिकांश समय शैक्षणिक कार्य मे सलग्न रहने के कारण राजस्थान मे ही व्यतीत हुआ था, किंतु बिहार से आपका संपर्क बराबर रहता था। 

वैसे आप वज्र-बधिर थे, किंतु आपकी बधिरता कभी भी आपके कार्य में आड़े नहीं आई। एक उत्कृष्ट मनोवैज्ञानिक समीक्षक के रूप में आपकी गणना की जाती थी। 

आपने सन्‌ 926 से लिखना प्रारंभ किया था और आपका सबसे पहला लेख 'खड़ग-विलास प्रेस पटना” की ओर से प्रकाशित होने वाली 'शिक्षा' नामक पत्रिका मे प्रकाशित हुआ था। आपकी समीक्षा-पद्धति पूर्णत. मनोवैज्ञानिक होती थी। आपकी ऐसी रचनाओ में 'साहित्य की रेखा', 'हिंदी का आधुनिक कथा साहित्य और मनोविज्ञान’, ‘कथा के तत्त्व, साहित्य और साहित्यकार’, ‘जैनेंद्र के उपन्यासों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन’, ‘साहित्य एव शोध-कुछ समस्याएं', ‘भाषा, साहित्य और मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति’, 'डॉ० रागेय राघव के उपन्यास और मेरी मान्यताएँ’, ‘रोमांटिक साहित्य-शास्त्र’ तथा 'बचपन के वे दिन” आदि प्रमुख है। आपने ‘कालिदास साहित्य का मनोवैज्ञानिक अध्ययन’ शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखा था, वह अप्रकाशित ही रह गया। आपने अनुवाद के क्षेत्र में भी योगदान दिया है। ऐसी कृतियों में ‘कार्ल एंड अन्ना’ (लियोगार्ड), 'इंडिया ऑफ़ माई ड्रीम्स’ (महात्मा गांधी) तथा ‘कल्चरल प्रोब्लम्स ऑफ़ इंडिया’ (पी० टी० राजू) आदि प्रमुख है।

अध्यापन और लेखन के अतिरिक्त आपने अनेक साहित्यिक संस्थाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया; 'अखिल भारतीय कुमार साहित्य परिषद्‌, ‘अंतर्भारती अजमेर' और ‘भोजपुर (बिहार) जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन' तथा ‘राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर' उनमें प्रमुख हैं। 

बिहार में आने पर ‘बिहार राजभाषा परिषद्‌’ ने आपको सम्मानित किया।  

आपका निधन 7 जुलाई सन्‌ 1980 को आरा (बिहार) में हुआ।

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