1693 - 1773 | अलवर, राजस्थान
'चरनदासी संप्रदाय' से संबंधित संत चरणदास की शिष्या। कविता में सर्वस्व समर्पण और वैराग्य को महत्त्व देने के लिए स्मरणीय।
जो पग धरत सो दृढ़ धरत, पग पाछे नहिं देत।
अहंकार कूँ मार करि, राम रूप जस लेत॥
कायर कँपै देख करि, साधू को संग्राम।
सीस उतारै भुइँ धरै, जब पावै निज ठाम॥
आप मरन भय दूर करि, मारत रिपु को जाय।
महा मोह दल दलन करि, रहै सरूप समाय॥
मनमोहन को ध्याइये, तन-मन करि ये प्रीत।
हरि तज जे जग में पगे, देखौ बड़ी अनीत॥
सूरा सन्मुख समर में, घायल होत निसंक।
यों साधू संसार में, जग के सहैं कलंक॥
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