1850 - 1885 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश
भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।
प्रेम प्रेम सब ही कहत प्रेम न जान्यौ कोय।
जो पै जानहि प्रेम तो मरै जगत क्यों रोय॥
लोक-लाज की गांठरी पहिले देइ डुबाय।
प्रेम-सरोवर पंथ में पाछें राखै पाय॥
प्रेम सकल श्रुति-सार है प्रेम सकल स्मृति-मूल।
प्रेम पुरान-प्रमाण है कोउ न प्रेम के तूल॥
सत्य हरिश्चंद्र नाटक
1940
श्री हरिश्चन्द्र कला
You have exhausted your 5 free content pages. Register and enjoy UNLIMITED access to the whole universe of Urdu Poetry, Rare Books, Language Learning, Sufi Mysticism, and more.
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश