बेनी प्रवीण का परिचय
जन्म :लखनऊ, उत्तर प्रदेश
हिंदी के आचार्य कवियों की परंपरा में बेनी प्रवीन का स्थान मतिराम, देव और दास के परवर्ती तथा पद्माकर के समकालीन कवि के रूप में निश्चित है। इनका वास्तविक नाम बेनीदीन वाजपेयी और 'प्रवीन' उपाधि थी, जो उन्हें बेनी नामक भड़ौआ रचने वाले अन्य कवि से प्राप्त हुई थी।
बेनी प्रवीण ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति 'नवरस तरंग' में अपने विषय में पर्याप्त परिचय दिया है। उनके आश्रयदाता नवलकृष्ण लखनऊ निवासी थे और अवध के नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर के दीवान राजा दयाकृष्ण के पुत्र थे। बेनी जी राधावल्लभीय संप्रदाय में दीक्षित थे। ज्ञात होता है कि 'नवरसतरंग' की रचना नवलकृष्ण की प्रशंसा के निमित्त 1817 ई. में की। कुछ समय के लिए ये बिठूर निवासी पेशवा नानाराव के आश्रय में रहे, जहाँ उन्होंने 'नानाराव प्रकास' ग्रंथ की रचना की। यह एक अलंकार ग्रंथ है। संभवतः ‘शृंगार भूषण' नामक रचना उनकी पहली रचना है, लेकिन उनकी ख्याति का आधार ग्रंथ ‘नवरस तरंग’ है। इसकी रचना-तिथि 1817 ई. है। इसकी रचना बरवै, दोहा, सवैया, सोरठा और मनहरण छंद में हुई है। यह रस-विषयक ग्रंथ है। केशवदास ने कृष्ण को नवरसमय ब्रजराज कहा है। इसी उक्ति का स्मरण करते हुए बेनी ने अपने ग्रंथ का नाम 'नवरस तरंग' रखा है। मिश्रबंधुओं के अनुसार इसमें गणिका, परकीया और अभिसारिका के बड़े ही विशद वर्णन हैं। शृंगार रस का विशद और अन्य रसों की संक्षेप में चर्चा है। अपने पूर्ववर्ती कवियों में बेनी प्रवीन ने केशव, बिहारी, मतिराम, घनानंद, देव, तोष और प्रतापसाहि आदि से प्रभाव ग्रहण किया है तथा उनकी उक्तियों का अनुसरण किया है। कवि ने अपनी कविता को विविध अलंकारों से अलंकृत करके भी इस परिपाक की ओर पूर्ण ध्यान दिया है। उसके अनेक छंद 'टकसाली' है तथा उनका समावेश बहुत मे संग्रहकारों ने अपने संग्रहों में किया है। लक्षण भले ही दोषपूर्ण रह गये हों परंतु उदाहरणों को पूर्णतया परिष्कृत और प्रभावपूर्ण बनाने का यत्न किया गया है। मध्याधीरा के उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत छंद अनेक काव्य-मर्मज्ञों द्वारा उनका सर्वोत्कृष्ट छंद माना गया है :
‘भार ही न्योति गयी तो तुम्हें वह गोकुल गाँव की ग्वालिनी गोरी।’
बेनी प्रवीन का शास्त्रकार लक्षणकार की अपेक्षा कवि के रूप में अधिक महत्त्व है। इनके काव्य का लालित्य अनेक स्थलों पर देव और मतिराम के समतुल्य है। कवित्व की दृष्टि से ही इनके ग्रंथ 'नवरस तरंग' की प्रसिद्धि है। इनमें भावों का सरस प्रवाह और गहरी भावुकता मिलती है। चित्रांकन की मार्मिकता भी इनके काव्य की विशेषता है। इनके प्रकृति-चित्रण अपेक्षाकृत संश्लिष्ट और प्रभावपूर्ण हैं। भावपूर्ण, सजीव तथा मार्मिक काव्य की दृष्टि से इस कवि को रीतिकाल के सरस कवियों में गिना जा सकता है।
कवि के अंतिम वर्ष सुख से नहीं बीत सके। उनकी मृत्यु को लेकर अनुमान ही लगाया जाता रहा है। कुछ लोगों के अनुसार बेनी प्रवीन की मृत्यु आबू में हुई और कुछ के अनुसार बदरीनाथ की यात्रा में।