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रीतिबद्ध कवि। उपहास-काव्य के अंतर्गत आने वाले ‘भँड़ौवों’ से विख्यात हुए।

रीतिबद्ध कवि। उपहास-काव्य के अंतर्गत आने वाले ‘भँड़ौवों’ से विख्यात हुए।

बेनी बंदीजन का परिचय

ये बेंती (जिला रायबरेली) के निवासी और अवध के प्रसिद्ध वजीर टिकैतराय के दरबारी कवि थे। कहा जाता है एक बार सन् 1817 ई. में इनमें और लखनऊ के प्रसिद्ध कवि बेनी बाजपेयी में टक्कर हो गयी, जिसमें इन्होंने बाजपेयी के महत्त्व को स्वीकारा और उन्हें 'प्रवीन' की उपाधि से विभूषित किया।

'शिवसिंह सरोज' के अनुसार इनका निधन 1835 ई. में हुआ। इन्होंने 'टिकैतराय प्रकाश' (अलंकार शिरोमणि'), 'रस-विलास' तथा अनेक भँड़ौवा की रचना की। इनके अतिरिक्त हाल की खोज से कवि के 'यश लहरी' नामक ग्रंथ का पता चला है। 'टिकैतराय प्रकाश' एक अलंकार ग्रंथ है। इसकी रचनाएँ उत्कृष्ट नहीं कही जा सकतीं किंतु इनका असाधारण महत्त्व है। यह ग्रंथ सन् 1792 ई. में रचा गया। दूसरे ग्रंथ 'रस-विलास' का निर्माण-काल 'मिश्रबंधु विनोद' के अनुसार सन् 1817 ई. है। इसमें रस-भेद तथा भाव-भेद के साथ-साथ नायक-नायिका एवं नौ रसों का वर्णन भी बड़े ही विस्तार से किया गया है। शास्त्रीय और कवित्व दोनों ही दृष्टियों से यह सुंदर रीति-ग्रंथ है। इसकी रचना लछिमनदास के नाम से हुई थी।

भँड़ौवा की रचना कवि के समस्त कृतित्व में एक अनोखी उपलब्धि है। इससे कवि को जितना यश मिला है, उतना उसकी अन्य रचनाओं से नहीं। उसके 36 भँड़ौवे हस्तलिखित रूप में और शेष 'भँड़ौवा-संग्रह', में जो ‘भारत जीवन प्रेस’ काशी से बहुत दिनों पहले प्रकाशित हो चुका है, पाये जाते हैं। 'यश लहरी' में देवी-देवताओं का यश गान किया गया है। इस कारण उसका 'यश लहरी' नाम उचित ही है। कवित्व की दृष्टि से उसके भँड़ौवों का स्थान महत्त्व का है। इससे पूर्व भँड़ौवा-शैली की रचनाओं की कोई स्थिति नहीं थी, इस कारण मौलिकता के विचार से भी ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ जाता है। भँड़ौवा बड़ी ही मनोरंजनात्मक शैली में उपहास की सृष्टि करता है। इस तरह की कविता में अक्सर किसी वस्तु, व्यक्ति आदि की निंदा को प्रधानता दी जाती है। इसी नाते इसे व्यंग्यकाव्य कहा जाय तो उचित होगा। इसी को उर्दू में 'हजो' तथा अँग्रेज़ी में 'सटायर' कहते हैं। इस शैली में दयाराम के आमों, लखनऊ के ललकदास और किसी से पाई हुई रजाई की अच्छी खिल्ली उड़ाई गयी है। ये प्रसंग इतने रोचक बन पड़े हैं कि लगभग सभी प्राचीन काव्य-रसिकों की जबान पर देखे जाते हैं। यमक और अनुप्रास का भी ध्यान रखा गया है। कलात्मक चारुता और सुकुमार भाव-व्यंजना की भी कमी नहीं है। मिश्रबंधुओं ने इन्हें पद्माकर-श्रेणी का कवि माना है।

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