बालकृष्ण भट्ट के व्यंग्य
पत्नीस्तव
हे महाराणी पत्नी तुम्हें नमस्कार है, तुम संसार का बंधन महा-जगड़वाल की मूलाधार हो। एक बार विवाह कर तुम्हारे जाल में फँस जाना चाहिए फिर क्या सामर्थि कि इस छंदान को तोड़ कोई कहीं भाग सके! यह तुम्हारी ही कृपा है कि आदमी एक जोरू कर खुद संसार भर की जोरू आप बनाता