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अर्जुनदास केडिया

1856 - 1931 | जयपुर, राजस्थान

प्राचीन शैली में लिखने वाले आधुनिक कवियों में से एक। अलंकार ग्रंथ 'भारती भूषण' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

प्राचीन शैली में लिखने वाले आधुनिक कवियों में से एक। अलंकार ग्रंथ 'भारती भूषण' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

अर्जुनदास केडिया का परिचय

उपनाम : 'अर्जुनदास केडिया'

जन्म :जयपुर, राजस्थान

निधन : वाराणसी, उत्तर प्रदेश

इनका जन्म राजस्थान के वर्तमान जिले सीकर के महनसर नामक गाँव में सन् 1856-57 ई. में हुआ था। यह वही महनसर है जो रजवाड़ों के समय से ही अपनी प्रसिद्ध शराब ‘महारानी’ के लिए जाना जाता है। अर्जुनदास का बचपन इनके पिता द्वारा बसाये गये 'रतननगर' नामक कस्बे में व्यतीत हुआ। कवि स्वामी गणेशपुरी इनके काव्यगुरु थे। इन्होंने संस्कृत, फ़ारसी, गुजराती, गुरुमुखी और उर्दू तथा हिन्दी का अच्छा अध्ययन किया था। ज्योतिष, वैद्यक आदि में भी इनकी अच्छी गति थी।

अर्जुनदास का समय रीतिकाल और आधुनिक काल की संधि रेखा पर ठहरता है। इनका रचनाकर्म आधुनिक काल का है लेकिन पुरानी परिपाटी के अनुसार ही इन्होंने साहित्य सृजन किया। आचार्यत्व का निर्वाह करते हुए आपने अलंकारशास्त्र ‘भारती भूषण’ की रचना की जो हिंदी काव्य-शास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।

केडिया जी के दो रूप ‘कवि’ और ‘आचार्य’ हमारे सामने हैं। 'काव्य-कलानिधि' नाम से इन्होंने अपनी कविताओं का संचयन किया था जो तीन भागों में प्रकाशित हुई हैं। प्रथम भाग की शृंगारी कविताओं का शीर्षक 'रसिक रंजन' है। द्वितीय भाग को 'नीति-नवनीत' तथा तृतीय भाग को 'वैराग्य वैभव' नाम लेखक ने दिया था। 'भारती भूषण' नामक अलंकार ग्रन्थ इनकी प्रसिद्ध कृति है, जिसकी रचना 1928 ई. में हुई थी। इसमें अलंकार-शास्त्र का विवेचन ही इनका का अभिप्रेत रहा है।

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