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अर्जुनदास केडिया

1856 - 1931 | जयपुर, राजस्थान

प्राचीन शैली में लिखने वाले आधुनिक कवियों में से एक। अलंकार ग्रंथ 'भारती भूषण' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

प्राचीन शैली में लिखने वाले आधुनिक कवियों में से एक। अलंकार ग्रंथ 'भारती भूषण' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

अर्जुनदास केडिया के दोहे

सूम साँचि धरि जात धन, भाग्यवान के हेतु।

दाँत दलत पीसत घिसत, रस रसना ही लेतु॥

काटत हू बितरत बिमल, परिमल मलयज-मूल।

सींचत हू घृत दूध मधु, सूलहि सृजत बबूल॥

कै धन धनिक कि धनिक धन, तजिहैं अवसि अक्रूर।

तिहिं धन लौं त्यागत धरम, तिन धनिकन-सिर धूर॥

प्रकृति पलटत साधु खल, पाय कुसंग सुसंग।

पंक-दोष पदम गहत, चंदन गुन भुजंग॥

अनहित हू जो जगत को, दुर्जन बृश्चिक ब्याल।

तजत न, तो हित क्यों तजै, संतत संत दयाल॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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