अंबिकादत्त व्यास के दोहे
गुंजा री तू धन्य है, बसत तेरे मुख स्याम।
यातें उर लाये रहत, हरि तोको बस जाम॥
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मोर सदा पिउ-पिउ करत, नाचत लखि घनश्याम।
यासों ताकी पाँखहूँ, सिर धारी घनश्याम॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere