आदित्य शुक्ल की संपूर्ण रचनाएँ
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मेरे लिए इक तकलीफ़ हूँ मैं
पिछले कुछ महीनों से उसने अपने बाल बढ़ा लिए थे, माथे पर जूड़ा बाँधने लगा था और ख़ुद को ख़ुद ही उष्णीष कहने लगा था। पिछले कुछ समय से वह बीमार हो चला है। उसक
By आदित्य शुक्ल | 12 सितम्बर 2023
प्रति-रचनात्मकता : रचनात्मकता का भ्रम और नया समाजशास्त्र
वाल्टर बेंजामिन का एक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण निबंध है—‘द वर्क ऑफ़ आर्ट इन द एज ऑफ़ मेकेनिकल रिप्रोडक्शन'। बीसवीं सदी में लिखा हुआ यह निबंध आज पहले से
By आदित्य शुक्ल | 13 दिसम्बर 2023
ग्रामदेवता
वह चकरोड पकड़े चले आ रहे। थोड़ा भचककर चल रहे थे। रामजी ने उनको दूर से ही देख लिया था। रामजी कुर्सी के पाए पर अपनी कोहनी धँसाकर मुँह बाए उनको आते देखते र
By आदित्य शुक्ल | 12 सितम्बर 2023