तेरे री लाल मेरो माखन खायौ
tere ri lal mero makhan khayau
तेरे री लाल मेरो माखन खायौ।
भरी दुपहरी सब सूनो घर ढंढोरि अब ही उठि धायौ॥
खोलि किवार अकेले मंदिर दूध दह्यो सब लरकन खायौ।
छींके ते काढ़ि, खाट चढ़ि मोहन कछु खायो कछु भू ढरकायौ॥
नित प्रति हानि कहांलौं सहिये यह ढोटा ऐसे ढंग लायौ।
परमानंद रानी तुम बरजो पूत अनोखों ते हीं जायौ॥
- पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 80)
- संपादक : हरगुलाल
- रचनाकार : परमानंददास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2008
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