सांभळ राव’र सांभळ राणा
sambhळ raw’r sambhळ rana
सांभळ राव’र सांभळ राणा, सांभळ खान बड़ा सुलताणा
तांभळ वेद कतैब कुराणा, सांभळ हिन्दू मुसळमाणा
उमत बाबै आद उपाई, सांभळ जुग संसारा।
जुगां छत्तीसां और बत्तीसां, पैलां अंत न पारा।
से नर जाणै तांह परवाणै, परलै धंधुकारा।
माय न हुंती बाप न हुंतो, पुत बंधु परवारा।
जामण मरण विछोह न हुंतो, न कोई हेत पियारा।
गिगन मंडळ में छतर न हुंतो, अँबर न हुंता तारा
चाँद न सूरज पौन न पाणी, न धरती गैणारा।
सातूं सायर औ नहीं हुंता, नौसे नदी झिलारा।
अठकुळ परवत ऐ नहीं हुंता, बणी अठारा भारा।
तंत न मंत न जड़ी न बूंटी, न दीसंता दीदारा।
सुरग पिंयाळे, सबदे जीते, वह त्रिलोके चौये चके।
नौये खंडे, इक्कीसे ब्रह्मंडे, एके वचन उधारा।
अब री घड़सी कासूं बूझै, जद रा देवां विचारा।
आप अपंपर फेरी मनस्या, फेर रच्या ओतारा।
म्हे तो घड़सी जद पण हुंता, (जद) वरतंता धंधुकारा।
आप ही करता आप ही हरता, आप ही इष्ट विचारा।
वाद बोथड़ समंदर पड़िया, किण विध लंघस्यो पारा।
कळजुग में निकलंकी भणियां, थळ माथै ओतारा।
कालंग मारां कुळ परचावां, निकळंक र नेजारा।
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ (जी)
असली ज्ञान विचारा।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 173)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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