ओं बडोत सिंभू सिरजणहार
on baDot simbhu sirajanhar
ओं बडोत सिंभू सिरजणहार, सर्वे रूप कियो विसतार।
पाये धरती सीस गैणार, ता सिंभूनै निमस्कार।
धरती माता ओपण सिंभू, सर्वासर्व सहिलुं भार।
गैणा रूपी ओपण सिंभू, तारा मंडळ तारोतार।
चंदा रूपी ओपण सिंभू, वाळी मूरत बाळ कुंवार।
सूरज रूपी ओपण सिंभू, आभ जोत तपै दीदार।
पाणी रूपी ओपण सिंभू, झर झर वरसै अमी फुंवार।
विसना रूपी ओपण सिंभू, केवट जीमै अणंत आहार।
पौणा रूपी ओपण सिंभू, गाजे बाजै ह्यांळी हांसै
सर्वासर्व सहिलुं भार।
जुग चौफेरी आप उपन्ना, प्रळे प्रळे धंधुकार।
बाहर सिंभू आप उपन्ना, भीतर सिरज्यो सौ’ संसार।
इतरे चिळते जोग ज लेणो, म्हे पण सोहां तिण गुरु लार।
जिण गुरु रो ज्ञान पुराणों, सरा नुवीं है, सुणल्यो
दुनिया एह विचार।
अंत न दीनो भेद न पायो, तातै कुहायो अलख अपार।
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ (जी) बांचै
इम्रत निज सारां ही सार।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 162)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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