ख़्वाजादास के पद
khwajadas ke pad
ख़्वाजादास से असद ज़ैदी ने तआ'रुफ़ करवाया था।
असद जी की साखी पर उनकी अहेतुक कृपा मुझ नाचीज़ पर भी बरसी।
एक
सुबकत-अफनत ख़्वाजादास!
नैहर-सासुर दोनों छूटा टूटी निर्गुनिए से आस
लतफत लोर हकासल चोला बीच करेजे अटकी फाँस
गगने-पवने, माटी-पानी, अगिन काहु पर नहिं बिस्वास
थहकल गोड़ रीढ़ पर हमला जुद्धभूमि में उखड़ी साँस
सुन्न सिखर पर जखम हरियरा फूलन लागे चहुँदिस बाँस
जेतने संगी सब मतिभंगी नुचड़ी-चिथड़ी दिखे उजास
बिरिछे बिरिछे टँगी चतुर्दिक फरहाद-ओ-शीरीं की लाश
दो
ख़्वाजादास पिया नहिं बहुरे!
नैनन नीर न जीव ठेकाने कथा फेरु नहिं कहु रे
यह रणभूमि नित्यप्रति खांडा गर्दन पे लपकहु रे
ज़ोर-जुलुम तन-मन-धन लूटत, जेठे कभु-कभु लहुरे
कवन राहि तुम बिन अवगाहों खाय मरो अब महुरे
ज़हर तीर बेधत हैं तन-मन अगिन काँट करकहु रे
तुम्हरी आस फूल गूलर कै मन हरिना डरपहु रे
नाहिं कछू, हम कटि-लड़ि मरबों पाछे जनि आवहु रे
तीन
ख़्वाजा का पियवा रूठा रे!
भीतर धधकत मुँह नहिं खोलत दुबिधा परा अनूठा रे
आवहु सखि मिलि गेह सँभारो गुरु के छपरा टूटा रे
कोही कूर कुचाली कादर कुटिल कलंकी लूटा रे
जप तप जोग समाधि हक़ीक़ी इश्क़ कोलाहल झूठा रे
पछिम दिसा से चक्रवात घट-पट-पनघट सब छूटा रे
मन महजिद पे मूसर धमकत राई-रत्ता कूटा रे
सहमा-सिकुड़ा-डरा देस का, पत्ता-बूटा-बूटा रे
चार
ख़्वाजा, संत बजार गए!
बधना असनी रेहल माला सब कुछ यहीं उतार गए
जतन से ओढ़ी धवल कामरी कचड़ा बीच लबार गए
जनम करम की नासी सब गति करने को व्योपार गए
छोड़ि संग लकुटी-कामरि को हाथ लिये ज्योनार गए
नेम पेम जप जोग ज्ञान सब झोंकि आगि पतवार गए
हड़बड़ तड़बड़ लंगटा-लोटा बीच गली में डार गए
नए राज की नई नीत के सिजदे को दरबार गए
पाँच
ख़्वाजा कहा होय अफनाए!
राजनीति बिष बेल लहालह धरम क दूध पियाए
देवल महजिद पण्य छापरी पंडित-मुल्ला छाए
सतचितसंवेदन पजारि के कुबुधि फ़सल उपजाए
देस पीर की झोरी-चादर साखा मृग नोचवाए
मन भीतर सौ-सौ तहख़ाना घृणा प्रपंच रचाए
दुरदिन दमन दुक्ख दरवाज़े दंभिन राज बनाए
साँवर सखी संग हम रन में जो हो सो हो जाए
- रचनाकार : मृत्युंजय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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