आज लखी सखि मनमोहिनी मूरत
aaj lakhi sakhi manmohini murat
आज लखी सखि मनमोहिनी मूरत माधुरी,
सुंदर चतुर सुजान कान्ह।
सीस मुकट स्रवन कुंडल, घुंघरारी अलक झलक,
चलत चाल ठुनक-ठुनक, अधरन मुरली बजाई तान॥
भूली सुध-बुध सब, गृह-काज डारि दियौ,
बिसरि गयौ खान-पान, लखि मनमोहन चतुर सुजान॥
‘बैजू बावरी’ रावरी कर डारी, मोहि न सुहात आन,
त्यागि दई कुल-कान॥
- पुस्तक : बैजू और गोपाल (पृष्ठ 70)
- संपादक : प्रभुदयाल मीतल
- रचनाकार : बैजू
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान मथुरा
- संस्करण : 1960
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