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मति गिरि! गिरै गोपाल के करते

mati giri! girai gopal ke karte

परमानंद दास

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मति गिरि! गिरै गोपाल के करते

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    मति गिरि! गिरै गोपाल के करते।

    अरे भैया ग्वाल लकुटिया टेकी अपने अपने कर के बलते॥

    सात द्यौस मूसलधार बरख्यौ बूंद परी एक जलधरतें।

    गोपी ग्वाल नंद सुराखे बरसि बरसि हार्यौ अंबर तें॥

    अंतरिच्छ जल जयो सिखर पर नंदनंदन को कोप अनलतें।

    परमानंद प्रभु राखि लियो ब्रज अमरापति आयो पायन परतें॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 88)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : परमानंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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