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मंगल हरि मंगला

mangal hari mangla

सैन भगत

सैन भगत

मंगल हरि मंगला

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    मंगल हरि मंगला, नित मंगलु राजा राइ कौं।

    धूप दीप घ्रित साजि आरती, जाऊँ वारने मंगलापति॥

    उत्तम दिअसरा निरमल बाती, तुहि निरंजनु कंवलापति॥

    राम भगति रामानंदु जाणौं, पूरन परमानंद बखाणैं॥

    मंगल मूरति भौ तारि गोविंद, सैन भणे भजि परमानंद॥

    सदा मंगल रहे, राजा राय का मंगल रहे। सर्वमंगल रहे। धूप, दीप, घृत की आरती सजाकर कमलापति की आरती करने जाता हूँ। आरती में उत्तम दीपक और उत्तम बाती सँजोई है। हे कँवलापति! तू ही निरंजन है। राम की भक्ति रामानंद जानते हैं। वे उसे पूर्ण परमानंद का बखान कर सकते हैं। भव तारनहार गोविंद ही मंगलमूर्ति हैं। सर्वमंगल और शुभ करने वाले हैं। सैन कहते हैं—उस परमानंद का भजन करो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 298)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013

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