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काहे को गोपीनाथ कहावत

kahe ko gopinath kahawat

सूरदास

सूरदास

काहे को गोपीनाथ कहावत

सूरदास

काहे को गोपीनाथ कहावत?

जो पै मधुकर कहत हमारे गोकुल काहे आवत?

सपने की पहिचानि जानि कै हमहि कलंक लगावत।

जो पै स्याम कूबरी रीझे सो किन नाम धरावत?

ज्यों गतराज काज के औसर औरे दसन दिखावत।

कहत सुनन को हम हैं ऊधो सूर अनत बिरमावत॥

गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव, कृष्ण प्रेम तो कुब्जा से करते हैं और अपने को गोपीनाथ कहाते हैं। यदि वे हमारे कहलाते हैं तो गोकुल क्यों नहीं आते? हमारी और उनकी पहचान स्वप्न जैसी है। फिर भी गोपीनाथ नाम धारण करके हमें कलंकित-लज्जित करते हैं। यदि वे कूबरी पर ही सच्चे मन से अनुरक्त हैं तो खुलकर ‘कूबरीनाथ’ क्यों नहीं कहलवाते? यह चाल उस हाथी जैसी है जिसके खाने के दाँत और हैं और दिखाने के दाँत और हैं। हे उद्धव, कहने-सुनने के लिए दिखाने के लिए तो हम उनकी प्रियतमा हैं, लेकिन वे रुकते कहीं और हैं—प्रेम किसी और से करते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : भ्रमरगीत सार (पृष्ठ 78)
  • रचनाकार : आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • प्रकाशन : लोकभारती
  • संस्करण : 2008
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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