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कहि-कहि वचन, बिहँसि, माथे पर

kahi kahi wachan, bihansi, mathe par

सहचरिशरण

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कहि-कहि वचन, बिहँसि, माथे पर

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    कहि-कहि वचन, बिहँसि, माथे पर कर को कबै धरोगे।

    करुनाकर चितचोर कहावत, चित को कबै हरोगे।

    हरषि हमारी आँखिन में सुख, सुषमा कबै भरोगे।

    ‘सहचरिसरन’ रसिक आशिक मोहि, मोहन कबै करोगे?

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरीसार (पृष्ठ 247)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 1939

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