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जेंवत स्याम नंद की कनियाँ।

jenwat syam nand ki kaniyan

जेंवत स्याम नंद की कनियाँ।

कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ।

बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध अगनियाँ।

डारत, खात, लेत अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ।

मिस्री, दधि, माखन मिस्रित करि, मुख नावत छबि धनियाँ।

आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत बनियाँ।

जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं तिहूँ भुवनियाँ।

भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ॥

स्रोत :
  • पुस्तक : श्रीकृष्णबाल-माधुरी (पृष्ठ 87)
  • रचनाकार : सूरदास
  • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर

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