हम परदेशी पावणां
hum pardeshi pawnan
हम परदेशी पावणां, दो दिन का मेजवान।
आखर चलना अंत को, निरगुण घर जांणा॥
नांद से बिंदु जमाइया, जैसा कुंभ का काचा।
काचा कुंभ न रहे एक दिन होएगा विनासा॥
खाणां पीणा सो आपणां, दिया लिया सो लाभ।
एक दिन अचरच होयगा, उठऽ लागोगे बाट॥
ब्रह्मगीर ब्रह्म ध्यान में, ब्रह्म ही कियो देवा।
ब्रह्म-ब्रह्म मिसरित भयो, करि ब्रह्म की सेवा॥
- पुस्तक : संत सिंगाजी एक अध्ययन (पृष्ठ 137)
- संपादक : रामनारायण उपाध्याय
- रचनाकार : ब्रह्मगीर
- प्रकाशन : साहित्य-कुटीर
- संस्करण : 1965
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