प्रभुजी म्हारी सुण लो आरत पुकार
prabhuji mhari sun lo aarat pukar
प्रभुजी म्हारी सुण लो आरत पुकार।
ऊमर पाकी नाव जरजरी, भवनद हे पुरजार।
खेवण नाव न जाणू हरिजी, नी हे सगत सम्हार॥
एक आसरो एक सहारो, एक ही अटल सहार।
बणो खेवटिया खेवण हारा, नाव लगा दो पार॥
सद्गुरु कृपा खेवटो पायो, नाव करे संतार।
सैन कहे मन पाको राखो, तारे क्रसन मुरार॥
हे प्रभु! मेरी आर्त पुकार सुन लो। उमर पक गई है। नाव जर्जर हो गई है। भवसागर गहरा है। मुझे तो नाव खेना भी नहीं आता। उसे खेने की शक्ति भी नहीं है। केवल आपका ही आसरा और अटल सहारा है। हे प्रभु! आप खेवटिया बनकर आ जाओ और मेरी नाव भवसागर से पार उतार दो। सैन भगत कहते हैं—मुझे सद्गुरू की कृपा से पूरा-पक्का नाविक मिल गया है। सद्गुरू ही मेरे नाविक हैं। वे ही मेरी नाव पार लगाएँगे। मन को पक्का रखो, सद्गुरू की कृपा से कृष्ण मुरारी अवश्य उद्धार करेंगे।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 304)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
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