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वारों मीन खंजन आली के

waron meen khanjan aali ke

परमानंद दास

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वारों मीन खंजन आली के

परमानंद दास

और अधिकपरमानंद दास

    वारों मीन खंजन आली के दृगन पर भ्रमरन गन।

    अति ही सलोने लोने अति ही सुढार ढारे अति कजरारे भारे बिन ही अंजन॥

    सेत असित कटाछन तारे उपमा को मृग कंजन।

    परमानंद प्रभु कर लीने प्यारी जु के मन के रंजन॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि : परमानंददास (पृष्ठ 48)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : परमानंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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