धरती इंद सिरे जोड़ावो
dharti ind sire joDawo
धरती इंद सिरे जोड़ावो, नित लग नेह सनेहा।
अमी मंडळ में बाजा बाजै, वरस सुवाया मेहा।
इंदर वरसै धरती सोसै, अंडा पेसै तेहा।
धरती माता सरव संतोखै, वरण छत्तीसूं ऐहा।
कांय रे प्राणी खोजनै खोजै, खाक हुवैली देहा।
काची काया गळ मळ जासी, हुय उडै भुस खेहा।
हाडां ऊपर पौन दुळैली, घण हर वरसै मेहा।
माटी में माटी मिल जासी, कुं कुं वरणी देहा।
हंस उडंतां काया पड़ेली, कळहर माचै केहा।
लेय विसंनर होमण हाल्या, आ सोढ्याळी देहा।
घड़ी घड़ी वाईंदा वाजै, रच्या ज रहसी छेहा।
हुय भतूळो खाक उडावै, करणी रा फळ ऐहा।
गांवां गाडर सहरां सूरी, खाड खणै हुय सेहा।
किये किरतनै जोय पिराणी, दोस न दीज्यो देवा
करणी हीणां नित पिछतावै, लाधै न गुरु रा भेवा।
जुगा छत्तीसां निरंजण बैठा, जिण गुरु री कीज्यो सेवा।
पूरै गुरुनै जपो रे प्राणी, आवै पापां रा छेहा।
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ(जी)
दीना ज्ञान धरम रा भेवा।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 172)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1997
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