भंवरगीत (कृष्ण-प्रति उपालंभ)
bhanwargit (krishn prati upalambh)
ऐसे में नंदलाल रूप नैननि के आगे।
आय गयौ छबि छाय बने बीरी अरु बागे॥
ऊधौ सों मुख मोरिकै कहत तिनहिं सों बात।
प्रेम-अमृत मुख ते स्रवत अंबुज-नैन चुचात॥
तरक रसरीति की॥
अहो! नाथ! रमानाथ और जदुनाथ गुसांई!
नंदनंदन बिडरात फिरत तुम बिनु बन गाई॥
काहे न फेरि कृपाल है गौ ग्वालन सुख लेहु।
दुख-जलनिधि हम बूड़हीं कर-अवलंबन देहु॥
निठुर है कहा रहे?॥
कोउ कहैं अहो दरस देत पुनि लेत दुराई।
यह छलबिद्या कहौ कौन पिय तुमहिं सिखाई॥
हम परबस आधीन हैं तातें बोलत दीन॥
जल बिनु कहि कैसे जियैं पराधीन जे मीन॥
बिचारौ रावरे!॥
कोउ कहै पिय दरस रेहु तौ बेनु सुनावौ॥
दुनि दुरि बन की ओट कहा हिय लोन लगावौ॥
हम तुम पिय एक ही तुमकों हमसी कोरि।
बहुताइत के रावरे प्रीति न डारो तोरि॥
एक ही बार यौं॥
कोउ कहे अहो स्याम कहा इतराय गए हौ।
मथुरा कौ अधिकार पाय महराज भए हौ॥
ऐसे कछु प्रभुता अहो जानत कोऊ नाहिं।
अबला बुधि सुनि डरि गई बली डरैं जग माहिं॥
पराक्रम जानिकै॥
कोउ कहै अहो स्याम चहत मारन जो ऐसे।
गोबरधन कर धारि करी रच्छा तुम कैसे?
ब्याल, अनल, बिष, ज्वाल तैं राखि लई सब ठौर।
बिरह-अनल अब दाहिहौ हंसि-हंसि नंदकिसोर॥
चोरि चित ले गए॥
कोउ कहे री सुनौ और इनके गुन आली।
बलिराजा पै गए भूमि मांगन बनमाली॥
मांगत बामन रूप धरि, परबत भयौ अकाय।
सत्त धर्म सब छांड़ि कै धरयो पीठ पै पाय॥
लोभ की नाव ये॥
इहि बिधि होइ अवसेस परम प्रेमहिं अनुरागीं।
और रूप पिय चरित तहां सब देषन लागीं॥
रोम-रोम रहे व्यापि कै जिनके मोहन आय।
तिनके भूत भविष्य कों जानत कौन दुराय॥
रंगीली प्रेम की॥
देखत इनको प्रेम नेम ऊधौ को भाज्यो।
तिमिर भार आवेश बहुत अपने जिय लाज्यौ॥
मन में कहि रज पायं को लै माथै निज धारि।
परम कृतारथ है रहौं त्रिभुवन-आनंद बारि॥
बंदना जोग ए॥
कबहूं कहै गुन गाय स्याम के इन्हैं रिझाऊं।
प्रेम भक्ति तौ भले स्यामसुंदर की पाऊं॥
जिहिं किहि बिधि ये रीझहीं सो हौं करों उपाय।
जातें मो मन सुद्ध होइ दुबिधा ग्यान मिटाय॥
पाय रस प्रेम कौ॥
ताही छिन एक भंवर कहूं तें उड़ि तहं आयौ।
ब्रज-बनिता के पुंज मांझ गुंजत छबि छायौ॥
बैठयौ चाहे पाय पर अरुन कमल-दल जानि।
सो मन ऊधौ को मनौं प्रथमहि प्रगटयो आनि॥
मधुप को भेष धरि॥
- पुस्तक : अष्टछाप कवि : नंददास (पृष्ठ 76)
- संपादक : सरला चौधरी
- रचनाकार : नंददास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2006
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