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मोहन रूप-अनूप किसोरी

mohan roop anup kisori

ललितमाधुरी

ललितमाधुरी

मोहन रूप-अनूप किसोरी

ललितमाधुरी

और अधिकललितमाधुरी

    मोहन रूप-अनूप किसोरी।

    मुख-लावण्य बिलोक लजाहीं, इंदु अनेकन काम करोरी॥

    घुंघरारी अलकावलि माथें, नील कमल पर भ्रमर उड़ै री।

    दीरघ नैन मैन मदमाते, स्रवन लागि कछु कह्यौ चहैं री॥

    भृकुटि बंक इद्र-धनु निंदक, अधर बिंब अपकर्ष कियैं री।

    अद्भुत चिबुक चारु दसनावलि, मृदु मुसक्यान-मिठान हिये री॥

    बोलनि चलनि बंक चितवनियाँ, अनुपम बँसुरी बिसद बजावै।

    ‘ललितमाधुरी’ छैल-चिकनियाँ, देखत बनै कहत नहिं आवै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : चैतन्य मत और ब्रज साहित्य (पृष्ठ 331)
    • संपादक : प्रभुदयाल मीतल
    • प्रकाशन : साहित्य संस्थान, मथुरा
    • संस्करण : 1962

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