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आजु सखी, प्रातकाल

aaju sakhi, pratkal

नारायण स्वामी

नारायण स्वामी

आजु सखी, प्रातकाल

नारायण स्वामी

और अधिकनारायण स्वामी

    आजु सखी, प्रातकाल, दृग-मींड़त जगे लाल,

    रूप के बिसाल सिंधु गुनन के जहाज।

    कुंडल सों उरझि माल, मुख पै अलकन कौं जाल,

    भई मैं निहाल निरखि सोभा की समाज॥

    आलस-बस झुकत ग्रीव, कबहूँ अँगड़ाई लेत,

    उपमा सम देत मोहिं आवत है लाज।

    ‘नारायण' जसुमति ढिग हौं तो गई बात कहन,

    यामें भये री, एक पंथ दोऊ काज॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 265)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : नारायणस्वामी
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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