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परोसत गोपी घूंघट मारे

parosat gopi ghunghat mare

परमानंद दास

परमानंद दास

परोसत गोपी घूंघट मारे

परमानंद दास

परोसत गोपी घूंघट मारे।

कनक लता सी सुंदरता सीमा जिबावन आयीं ब्रजनार॥

रुनक झुनक आंगन में डोलत लीले कंचन थान।

मोहन जू की खरी मिलनियां हांसी के मिस डार॥

घर की सोंज मिलाइ सदन में आगे ले जब धाये।

नंदराय नंदरानी तें दुरिलालें भनो मनाये॥

रुचिर काछनी जटित को धनी जूरो बांध निवारे।

परमानंद अवलोकन कारन ठाडी माइ सिंध द्वारे॥

स्रोत :
  • पुस्तक : अष्टछाप के कवि : परमानंददास (पृष्ठ 43)
  • संपादक : हरगुलाल
  • रचनाकार : परमानंददास
  • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
  • संस्करण : 2008

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