अमृतलाल नागर का श्री उपेंद्रनाथ अश्क के नाम पत्र
amritlal nagar ka shri upendrnath ashk ke nam patr
अमृतलाल नागर
Amrit Lal Nagar
अमृतलाल नागर का श्री उपेंद्रनाथ अश्क के नाम पत्र
amritlal nagar ka shri upendrnath ashk ke nam patr
Amrit Lal Nagar
अमृतलाल नागर
और अधिकअमृतलाल नागर
चौक, लखनऊ-3
1-6-73
अश्क भाई,
पिछले डेढ़ माह से जितनी जल्दी-जल्दी हाई-ब्लड प्रेशर का शिकार हुआ, उस तरह यदि कुछ और पहले से होता तो सीना तानकर कहता कि दोषी मैं नहीं, मेरी बीमारी है। इस स्थिति में बस यही कह सकता हूँ कि ऐ बाबा-ए-अदम्य, मेरे बड़े भाई! मिलने पर मुझे दो जूते मारकर अपना क्रोध शांत कर लेना। अपने महाआलस्य और निकम्मेपन के इस लंबे दौर का बयान क्या करूँ, ख़ुद अपने से ही नफ़रत-सी हो गई है। आलस के दौर तो अक्सर आते रहते हैं, पर इतनी लंबी अवधि तक कभी अल्प-प्राण नहीं रहा। भीतर वाला जानता है कि मेरी यह दुर्दशा अस्थाई है। स्रोत पाने के लिए धरती फोड़ते-फोड़ते अब जो कंकड़ की सख़्त चट निकल आई है तो मन ने घबराकर सुस्ताने का बहाना साध रखा है। ख़ैर, अपने चि. पौत्र के नाम की तरह मेरी सुगतिशीलता भी अदम्य है, जल्दी ही जीत जाऊँगा।
मुँह देखा न मानना, तुम्हारा ख़त मुझे सबसे अधिक प्यारा लगा। इसका एक मात्र कारण यही है कि ‘मानस का हंस’ पर तुमसे पत्र पाने की आशा मैंने नहीं की थी। वह पत्र प्रकाशन को भेजने की इच्छा भी अब तक मेरे निकम्म्ोपन के कारण ही प्रतिफलित नहीं हुई। अब हो जाएगी। तुमसे भी अधिक चि. नीलाभ और दूधनाथ सिंह की प्रशंसा मुझे अपने लिए क़ीमती लगी। यह साबित करता है कि मेरी स्पिरिट ग़लत नहीं है। तुमने यह बात सही लिखी है कि राम माने कर्तव्य। यह कर्तव्यपरायणता ही मेरी राम-भक्ति है। मेरा राम बिल्कुल ग़ैबी नहीं है, और जितना कुछ है भी, उसे यथार्थ के धरातल पर लाकर उजागर में देखना चाहता हूँ। यही तो मेरा संघर्ष है।
तुमने अपना उपन्यास लिखना छोड़कर ‘मानस का हंस’ पढ़ा और ख़ास करके अपने सृजनात्मक अहम की प्रबलता के समय भी उसे पढ़ कर केवल सराहा ही नहीं, बल्कि मुझे पत्र भी लिखा, यह तुम्हारी निश्छल उदार-प्रकृति का स्पष्ट प्रमाण है। राम करे तुम्हारी कर्मसिद्धियाँ और तुम्हारा यश दिनों-दिन बढ़े। भाभी जुलजुल बूढ़-सुहागन और तुम जुलजुल बूढ़ सुहागे हो।
चि. बेटे, सौ. बहुओं और उनके आयुष्मान नन्हें-मुन्नों को हार्दिक शुभाशीष। तुम्हें और सौ. भाभी को सप्रेम नमस्कार।
सदा तुम्हारा
अमृतलाल नागर
- रचनाकार : अमृतलाल नागर
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