अमृतलाल नागर के पत्र
अमृतलाल नागर का डॉ. रामविलास शर्मा के नाम पत्र
चौक, लखनऊ-3 1964 प्यारे डॉक्टर 'जत्थेदार', इधर पाँच-छह रोज़ तक मेरा मन आठों याम अंतर्मुखी ही रहा। बहिर्मुखी होकर कार्य-संपादन करते हुए भी वह अविराम रूप से अंतर्मुखी ही रहा। दुनिया की हर बात केवल एक ही धुन में सुनाई पड़ रही थी। 'यद् यद् कर्म