मेरे तन मन लग गई
mere tan man lag gai
मेरे तन मन लग गई पिय की मीठी बोल॥
पिय की मीठी बोल सुनत मैं भई दिवानी।
भंवरगुफा के बीच उठत है सोहं बानी॥
देखा पिय का रूप रूप में जाय समानी।
जब से भया मिलाप मिले पर ना अलगानी॥
प्रीत पुरानी रही लिया हम ने पहिचानी।
मिली जोत में जोत सुहागिन सुरत समानी॥
पलट सब्द के सुनत ही घूँघट डारा खोल।
मेरे तन मन लग गई पिय की मीठी बोल॥
प्रियतम आत्मा की चर्चा सुनकर मेरे तन-मन में उसका बोध समा गया। मैं उससे एकमेक होने के लिए पगली हो गई। अब हृदय में निरंतर गहरी ध्वनि उठती है कि 'वह मैं हूँ।' जब प्रियतम आत्मा के स्वरूप का बोध हुआ तब मैं उसमें जाकर लीन हो गई। जब से मैं आत्मलीन हुई, तब से उनसे अलग नहीं हुई। चेतन आत्मा ही अपना शाश्वत स्वरूप है, इसको मैंने पहचान लिया। मनोवृत्ति ज्योति आत्मज्योति में मिल गई। मैं आत्म-पति वाली होकर सुहागिन हो गई और आत्मभाव के लक्ष्य में लीन हो गई। पलटू साहेब कहते हैं कि गुरु के आत्मबोधपरक शब्द 'मैं वही हूँ जिसे मैं चाहता हूँ' सुनते ही अविद्या का परदा हट गया। आत्मबोध की बात मेरे तन-मन में व्याप्त हो गई।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 52)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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