पर स्वारथ के कारने
par swarath ke karne
पर स्वारथ के कारने संत लिया औतार।
संत लिया औतार जगत को राह चलावै।
भक्ति करें उपदेस ज्ञान दे नाम सुनावै॥
प्रीति बढ़ावैं जक्त में धरनी पर डोलैं।
कितनौ कहै कठोर बचन वे अमृत बोलैं॥
उनको क्या है चाह सहत हैं दुःख घनेरा।
जिव तारन के हेतु मुलुक फिरते बहुतेरा॥
पलटू सतगुरु पाय के दास भया निरवार।
पर स्वारथ के कारने संत लिया औतार॥
संतजन लोककल्याण करने के लिए भ्रमण करते हैं। वे संसार के लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए रास्ता बताते हैं। वे भक्ति-भाव से चलने का उपदेश देते हैं, आत्मज्ञान देकर मंत्र-दीक्षा भी देते हैं जिसमें सत्य का नाम सुनाते हैं। वे सभी मनुष्यों में पारस्परिक प्रेम बढ़ाने की राय देते हैं और इन सबके लिए पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं। उनको कोई चाहे कितना ही कटु वचन कहे, परंतु वे विनम्रतापूर्वक मीठे वचन ही बोलते हैं जो सुनने में अमृत के समान लगते हैं। आत्मसंतुष्ट संत पुरुष को संसार से क्या चाहना है? वे लोक-कल्याण के लिए ही नाना दुख सहकर जगत के लोगों को बोध देते हैं। वे जीवों का उद्धार करने के लिए ही अनेक देशों में घूमते रहते हैं। पलटू साहेब कहते हैं कि सद्गुरु की शरण पाकर इस दास का बंधन कट गया। संत जगज्जीवों के कल्याण के लिए ही संसार में घूमते हैं।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 8)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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