Font by Mehr Nastaliq Web

धुबिया फिर मर जायगा

dhubiya phir mar jayga

पलटू

पलटू

धुबिया फिर मर जायगा

पलटू

धुबिया फिर मर जायगा चादर लीजै धोय॥

चादर लीजै धोय मैल है बहुत समानी।

चल सतगुरु के घाट भरा जहँ निर्मल पानी॥

चादर भई पुरानि दिनों दिन बार कीजै।

सतसंगत में सौंद ज्ञान का साबुन दीजै॥

छूटै कलमल दाग नाम का कलप लगावै।

चलिए चादर ओढ़ि बहुरि नहिं भवजल आवै॥

पलटू ऐसा कीजिये मन नहिं मैला होय।

धुबिया फिर मर जायगा चादर लीजै धोय॥

जो अपनी मन-चादर के वासना-मल को धो सकता है, वह मनुष्य पहले के समान पुनः मर जाएगा; इसलिए हे साधक! अपने मन की चादर को धो ले। मल होने से मन-चादर में परत-पर-परत मैल जमा है। हे साधक! इसे धोने के लिए सद्गुरु के सत्संग-घाट पर चल, जहाँ ज्ञान का निर्मल जल भरा है। यह शरीर-मन की चादर पुरानी हो गई है और दिन प्रतिदिन पुरानी हो रही है, इसलिए इसको धोने में देरी कर। ज्ञान का साबुन लेकर सत्संग में इसे भिगाकर साबुन लगाओ और धोओ। जब इसके मोह का दाग छूट जाए तब इस पर सत जिसका नाम है, उस आत्मज्ञान की मांड़ी चढ़ाकर इसको सुंदर बना लो, और इसको ओढ़कर पूरे जीवन की दिव्य रहनी में चलो, फिर भवसागर में नहीं आना होगा। पलटू साहेब कहते हैं कि ऐसी दिव्य रहनी में जीवनपर्यंत रहो जिससे मन मैला हो। ध्यान रखो, यह मनुष्य-धोबी पहले की तरह पुनः मर जाएगा, इसलिए जीवन की चादर शीघ्र धो लो।

स्रोत :
  • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 11)
  • संपादक : अभिलाषा दास
  • रचनाकार : पलटू
  • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
  • संस्करण : 2012

यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY