गय विद्दरवि बलाहय गयणिहि,
मणहर रिक्ख पलोइय रयणिहि।
हुयइ वासु छम्मयलि फणिंदह,
फुरिय जुन्ह निसि निम्मल चंदह॥
सोहइ सलिलु सरिहिँ सयवत्तिहि,
विविह तरंग तरंगिणि जंतिहि।
जं हय हीय गिंभि णवसरयह,
तं पुण सोह चडी णवसरयह॥
हंसिहि कंदुट्टवि घुट्टिवि रसु,
किउ कलयलु सुमणोहरु सुरहसु।
उच्छलि भुवण भरिय सयवत्तिहिँ,
गय जलरिल्लि पडिल्लिय तित्थिहिँ॥
धवलिय धवलसंखसंकासिहि,
सोहहि सरहतीर संकासिहि।
णिम्मलणीर सरिहिँ, पवहंतिहिँ,
तड रेहंति विहंगमपंतिहिँ॥
पडिंबिंबउ दरसिज्जइ विमलिहि,
कद्दमभारु पमुक्किउ सलिलिहि।
सहमि ण कुंज सद्दु सरयागमि,
मरमि मरालागमिण हु तग्गमि॥
झिज्झउँ पहिय जलिहि झिज्झंतिहि,
खिज्जउँ खज्जोयहिँ खज्जंतिहि।
सारस सरसु रसहिँ किं सारसि!
मह चिर जिण्ण दुक्खु किं सारसि॥
णिट्ठुर करुणु सद्दु मणमहि लव,
दड्ढा महिल हाइ गयमहिलव।
इम इक्किक्कह करुण भणंतह,
पहिय ण कुइ धीरवइ खणंतह॥
अच्छहि जिह सन्निहि घर कंतय,
रच्छिहि रमहि ति रासु रमंतय।
करिवि सिँगारु विविह आहरणिहिँ,
चित्तविचित्तहिँ तणु पंगुरणिहिँ॥
तिलु भालयलि तुरक्कि तिलक्किव,
कुंकुमि चंदणि तणु चच्चक्किव।
सोरंडहिँ करि लियहि फिरंतिहि,
दिव्व मणोहरु गेउ गिरंतिहि॥
धूव दिति गुरुभत्ति-सइत्तिहि,
गोआसणिहिँ तुरंग चलत्थिहि।
तं जोइवि हउँ णिय उव्विन्निय,
णेय सहिय मह इच्छा उन्निय॥
तउ पिक्खिय दिसि अहिय विचित्तिय,
णाय हुआसणि जणु पक्खित्तिय।
मणि पज्जलिय विरह झालावलि,
णंदिणि गाह भणिय भमरावलि॥
संकसाय णवब्भिस सुद्ध गले,
धयरट्ठ-रहंग रसंति जले।
गइ दंति चमक्करिणं पवरं,
सरयासिरि णेवर झीण सरं॥
आसोए सरइ महासिरीहि पयखलिर वेयवियडाए।
सारसि रसिऊण सरं पुणरुत्त रुयाविया दुक्खं॥
ससिजुन्ह निसासु सुसोहिययं धवलं,
वरतुंगपयार मणोहरयं अमलं।
पियवज्जिय सिज्ज लुलंत पमुक्करए,
जमकुट्ट सरिच्छ विहावि हए सरए॥
अच्छहि जिह नारिहिं नर रमिरइ,
सोहइ सरह तोर तिह भमिरइ।
बालय वर जुवाण खिल्लंतय,
दीसहिं घरि घरि पडह बजंतय॥
दारय कुंडवाल तंडव कर,
भमहि रत्थि वायंतय सुन्दर।
सोहहि सिज्ज तरुणि जण सत्थिहि,
घरि घरि रमियद रेह पलत्थिहि॥
दिंतिय णिसि दीवालिय दीवय,
णवससिरेह सरिस करि लीअय।
मंडहि भुवण तरुण जोइक्खहिँ,
सहिलिय दिंति सलाइय अक्खिहिँ॥
कसिणंबरिहिँ विहाविह भंगिहिँ,
कड्ढिय कुडिल अणेगतरंगिहिँ।
मियणाहिण मयवट्ट मणोहर,
चच्चिय चक्का वट्ट पयोहर॥
अंगि अंगि घणु घुसिणु विलत्तउ,
णे कंदप्प सरिहि विसु खित्तउ।
सज्जिउ कुसुमभारु सीसोवरि,
णं चंदट्ठु कसिणघणगोवरि॥
झसुरु कपूर बहुलू मुहि छुद्धउ,
णं पच्चूसिहि दिणपहु बुद्धउ।
रहसुच्छलि कीरइ पासाहण,
वर रय किंकिणीहिँ सिज्जासण॥
इमि किवि केलि करहि संपुन्निय,
मइ पुणु रयणि गमिय उव्विन्निय।
अच्छइ घरि घरि गीउ रवन्नउ,
इक्कु समग्गु कट्ठ महु दिन्नउ॥
पुण पिउ समरिउ पहिय! चिरग्गउ,
णियमणि जाणि तहवि सूरग्गउ।
घण जलबाहु बहुल मिल्हेविणु,
पढ़िय अडिल मइ वत्थु तहेविणु॥
णिसि पहरद्धु णेय णंदीयइ,
पिय कह जंपिरी उणंदीयइ।
रय णिमिसिद्धु अद्धु णंदीयइ,
बिद्धी कामतत्ति णं दीयइ॥
कि तहि देसि णहु फुरइ जुन्ह णिसि णिम्मल चंदह,
अह कलरउ न कुणंति हंस फल सेवि रविंदह।
अह पायउ णहु पढ़इ कोइ सुललिय पुण राइण,
अह पंचमु णहु कुणइ कोइ कावालिय भाइण।
महमहइ अहव पच्चूसि णहु ओससित्तु घण कुसुमभरु,
अह मुणिउ पहिय! अणरसिउ पिउ सरइ समइ जु न सरइ घरु॥
आकाश में बादल बिखरकर चले गए। रात में मनोहर तारे दिखने लगे। सर्प पृथ्वी के नीचे विश्राम करने चले गए। रात्रि में निर्मल चंद्रमा की चंद्रिका फैलने लगी। सरोवरों का जल शतपत्निकाओं से शोभित हुआ और नदियों का बहते हुए विविध तरंगों से। नव सरोवरों की जो शोभा ग्रीष्म द्वारा हर ली गई थी वह शरद के आगमन से फिर लौट आई। हंसों ने कमल का रस पीकर रभसपूर्वक मनोहर शब्द किया। शतपत्रों से भुवन उच्छल रूप से भर गया। शतपत्र जलप्रवाह से घाटों पर पहुँच गए। श्वेत शंखों के समान श्वेत कासों से सरोवर के तीर शोभित हो गए। प्रवहमान निर्मल नीर से युक्त नदियों के तट विहंगम पंक्तियों से शोभित हो गए। कर्दमभार से प्रयुक्त विमल जल में प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। शरद के आगमन पर कुजों का शब्द मैं सहन नहीं कर पाती हूँ। मरालों के आगमन और गमन से भी मैं मरती हूँ। पथिक! जल के कम होते के साथ-साथ मैं भी छीजने लगी। खद्योतों के चमकने के साथ मैं खीझने लगी। सारस सरस शब्द करते हैं। हे सारसि! मेरे चिरजीर्ण दुख का स्मरण क्यों कराती हो। निष्ठुर करुण शब्दों को मन में ही लिए रहो, क्योंकि वे शब्द सुनकर विरहदग्धा महिलाएँ उदास हो जाती हैं। हे पथिक! इस प्रकार एक-एक करुण शब्द बोलती हुई मुझको कोई क्षणभर भी लिए धीरज नहीं बँधाता। घर पर जिनके कंत साथ हैं, वे स्त्रियाँ विविध आभरणों और चित्न-विचित्र वस्त्रों से शरीर का शृंगार करके गलियों में रास खेलती हुई घूमती हैं। भालतल को चटकीले तिलक से तिलकित कर, शरीर को कुंकुम चंदन से चर्चित करके हाथों में सोरंडक लिए, घूमती हुई स्त्रियाँ दिव्य मनोहर गीत गाती हुई— बड़ी भक्ति के साथ गोशाला और तुरंगशाला में धूप देती हैं। उन्हें देखकर मैं नितांत उद्विग्न हो गई। मैं यह सहन नहीं कर पाई और मेरी प्रिय विषयक इच्छा बढ़ गई।
इसके बाद जब मैंने अधिक रंग-बिरंगी दिशाओं की ओर देखा तो मानो अग्नि में फेंक दी गई। मन में विरह की ज्वालाएँ प्रज्वलित हो उठीं। मैंने नंदिनी गाथा और भ्रमरावलि पढ़ी। अश्विन मास में पानी के स्खलन के वेग से विकट बनी हुई नदियों के सारसों ने शब्द कर के दुख से मुझे फिर रुला दिया। नय कमल नाल (खाकर) कषायित शुद्ध गले से हंस और चक्रवाक जल में बोलते हैं। उनका बोलना शरदश्री के नूपुर की क्षीण ध्वनि की तरह लगता है जो शरद की गति को चमत्कार और शोभा प्रदान करती है। रात्रि में शशि ज्योत्स्ना ने धवलगृहों को सुशोभित कर दिया और वरतुंग प्राकारों को अमल मनोहर कर दिया। मैं रति से वंचित प्रिय से शून्य शय्या पर लोटती हुई हत शरद की रात्रि को, जो यमराज के प्रहार के सदृश घातक है, बिताती हूँ। जिन नारियों के रमते हुए कंत साथ हैं, उन भ्रमण करती हुई स्त्रियों से सरोवर के तट शोभित हैं। बालक खेल रहे हैं। घर-घर पटह बजता सुनाई पड़ता है। स्त्रियाँ कुंडलाकार नाचती और सुंदर वाद्य बजाती हुई गलियों में घूमती हैं। तरुणिजनों से शय्याएँ शोभित हैं। घर-घर पूरे हुए चौक सुंदर लगते हैं। दीपावली के अवसर पर रात्रि में स्त्रियाँ दीपदान करती हैं। वे हाथों में नव शशि रेखा के समान दीप लेती हैं। सुंदर दीपकों से गृह मंडित हैं। महिलाएँ आँखों में अंजन लगाती हैं। स्त्रियाँ विविध भंगिमाओं से पहने हुए काले कपड़ों से शोभित हैं, जिन पर अनेक कुटिल लहरियाँ बढ़ी हैं। उनके चक्रावतं पयोधर और मनोहर मदन पट्ट हृदय प्रदेश मृगनाभि से चर्चित हैं। उन्होंने अंग-अंग में कपूर का सघन लेप कर लिया है, वह ऐसा लगता है मानो कंदर्प ने वाणों से विष फैला दिया है। शीश भाग कुसुम भार सज्जित है मानो घने काले रंग वाले गोपुर पर चंद्रमा स्थित हो। उनका मुख, कर्पूर-बहुल पान डाल लेने से ऐसा लगता है मानो प्रत्यूष बेला में सुर्य उगा हो। प्रसाधन अतिशीघ्रता से किया जाता है और शय्यासन पर किंकिणियों का सुंदर शब्द सुनाई पड़ते हैं। इस प्रकार कोई पुण्यवती केलि करती है और मैं रोते हुए उद्विग्नतापूर्वक बिताती हूँ। घर-घर रमणीय गीत होता है। सारा दुख अकेले मुझे ही दिया गया है। पथिक! फिर मैंने चिरगत प्रिय का स्मरण किया और अपने मन में सूर्योदय का समय जानकर, बहुत आँसू बहाती हुई यह अडिल पढ़ा। रात्रि में आधे पहर भी नींद नहीं आती, प्रिय संबंधी कथा की कल्पना करती रहने वाली को आनंद नहीं मिलता, आधे निमिष भी चैन नहीं मिलती। कामतप्ता विद्धा क्या विदीर्ण नहीं हो जाती! क्या उस देश में रात्रि में निर्मल चंद्रमा की ज्योत्स्ना नहीं स्फुरित होती या कमल के फलों का सेवन करके हंस कलरव नहीं करते या कोई राग से सुललित प्राकृत नहीं पढ़ता, या कोई उस कापालिक के सामने भावपूर्वक पंचम नहीं छेड़ता या प्रत्यूष बेला में ओससिक्त धनकुसुमभार महकता नहीं। हे पथिक! क्या मैं यह मान लूँ कि प्रिय अरसिक हो गया है, जो वह शरद काल में भी घर का स्मरण नहीं करता है।
gay viddarvi balaahay gay.na.ihi,
ma.nahar rikkh palo.iy ray.na.ihi।
huy.i vaasu chhammayli pha.na.i.ndah
phuriy junh nisi nimmal cha.ndah||
soha.i salilu sarihi.n sayvattihi,
vivih tara.ng tara.ngi.na.i ja.ntihi।
ja.n hay hiiy gi.mbhi .navasaryah,
ta.n pu.n soh chaDii .navasaryah||
ha.nsihi ka.nduTTavi ghuTTivi rasu,
ki.u kalaylu sum.na.oharu surahsu।
uchchhali bhuv.n bhariy sayvattihi.n,
gay jalrilli paDilliy titthihi.n||
dhavliy dhavalsa.nkhsa.nkaasihi,
sohahi sarahtiir sa.nkaasihi।
.na.immal.na.iir sarihi.n, pavha.ntihi.n,
taD reha.nti viha.ngampa.ntihi.n||
paDi.mbi.mb.u darsijja.i vimlihi,
kaddambhaaru pamukki.u salilihi।
sahmi .n ku.nj saddu saryaagami,
marmi maraalaagami.n hu taggami||
jhijjha.u.n pahiy jalihi jhijjha.ntihi,
khijja.u.n khajjoyahi.n khajja.ntihi।
saaras sarsu rashi.n ki.n saarasi!
mah chir ji.n.n dukkhu ki.n saarasi||
.na.iTThur karu.na.u saddu ma.namahi lav,
daDDha mahil haa.i gayamhilav।
im ikkikkah karu.n bha.na.ntah,
pahiy .n ku.i dhiirav.i kha.na.ntah||
achchhahi jih sannihi ghar ka.ntay,
rachchhihi ramhi ti raasu rama.ntay।
karivi si.ngaaru vivih aahar.na.ihi.n,
chittavichittahi.n ta.na.u pa.ngur.na.ihi.n||
tilu bhaalayli turakki tilakkiv,
ku.nkumi cha.nd.na.i ta.na.u chachchakkiv।
sora.nDhi.n kari liyhi phira.ntihi,
divv ma.na.oharu ge.u gira.ntihi||
dhuuv diti gurubhatti-sa.ittihi,
go.aasa.na.ihi.n tura.ng chalatthihi।
ta.n jo.ivi ha.u.n .na.iy uvvinniy,
.na.ey sahiy mah ichchha unniy||
ta.u pikkhiy disi ahiy vichittiy,
.na.aay hu.aasa.na.i ja.na.u pakkhittiy।
ma.na.i pajjaliy virah jhaalaavali,
.na.ndi.na.i gaah bha.na.iy bhamraavali||
sa.nksaay .navabbhis suddh gale,
dhayraTTha-raha.ng rasa.nti jale।
ga.i da.nti chamakkari.na.n pavra.n,
saryaasiri .na.evar jhii.n sara.n||
aaso.e sar.i mahaasiriihi payakhlir veyaviyDaa.e।
saarasi rasi.uu.n sara.n pu.narutt ruyaaviya dukkha.n||
sasijunh nisaasu susohiyya.n dhavla.n,
vartu.ngapyaar ma.na.oharya.n amla.n।
piyvajjiy sijj lula.nt pamukkar.e,
jamkuTT sarichchh vihaavi ha.e sar.e||
achchhahi jih naarihi.n nar ramir.i,
soha.i sarah tor tih bhamir.i।
baalay var juvaa.n khilla.ntay,
diisahi.n ghari ghari paDah baja.ntay||
daaray ku.nDvaal ta.nDav kar,
bhamhi ratthi vaaya.ntay sundar।
sohahi sijj taru.na.i ja.n satthihi,
ghari ghari ramiyad reh palatthihi||
di.ntiy .na.isi diivaaliy diivay,
.navassireh saris kari lii.ay।
ma.nDhi bhuv.n taru.n jo.ikkhahi.n
sahiliy di.nti salaa.iy akkhihi.n||
kasi.na.mbrihi.n vihaavih bha.ngihi.n,
kaDDhiy kuDil a.na.egatra.ngihi.n।
miy.na.aahi.n mayvaTT ma.na.ohar,
chachchiy chakka vaTT payohar||
a.ngi a.ngi gha.na.u ghusi.na.u vilatta.u,
.na.e ka.ndapp sarihi visu khitta.u।
sajji.u kusumbhaaru siisovari,
.na.n cha.ndaTThu kasi.nagha.nagovari||
jhasuru kapuur bahuluu muhi chhuddha.u,
.na.n pachchuusihi di.napahu buddha.u।
rahsuchchhali kiira.i paasaaha.n,
var ray ki.nki.na.iihi.n sijjaasa.na||
imi kivi keli karhi sa.npunniy,
ma.i pu.na.u ray.na.i gamiy uvvinniy।
achchha.i ghari ghari gii.u ravanna.u,
ikku samaggu kaTTh mahu dinna.u||
pu.n pi.u samri.u pahiy! chiragga.u,
.na.iyam.na.i jaa.na.i tahvi suuragga.u।
gha.n jalbaahu bahul milhevi.na.u,
paDhiy aDil ma.i vatthu tahevi.na.u||
.na.isi pahraddhu .na.ey .na.ndiiya.i,
piy kah ja.npirii u.na.ndiiya.i।
ray .na.imisiddhu addhu .na.ndiiya.i,
biddhii kaamatatti .na.n diiya.i||
ki tahi desi .nahu phur.i junh .na.isi .na.immal cha.ndah,
ah kalar.u n ku.na.nti ha.ns phal sevi ravi.ndah।
ah paaya.u .nahu paDh़i ko.i sulliy pu.n raa.i.n,
ah pa.nchmu .nahu ku.na.i ko.i kaavaaliy bhaa.i.n।
mahmah.i ahav pachchuusi .nahu osasittu gha.n kusumabhru,
ah mu.na.i.u pahiy! a.narasi.u pi.u sar.i sam.i ju n sar.i gharu||
gay viddarvi balaahay gay.na.ihi,
ma.nahar rikkh palo.iy ray.na.ihi।
huy.i vaasu chhammayli pha.na.i.ndah
phuriy junh nisi nimmal cha.ndah||
soha.i salilu sarihi.n sayvattihi,
vivih tara.ng tara.ngi.na.i ja.ntihi।
ja.n hay hiiy gi.mbhi .navasaryah,
ta.n pu.n soh chaDii .navasaryah||
ha.nsihi ka.nduTTavi ghuTTivi rasu,
ki.u kalaylu sum.na.oharu surahsu।
uchchhali bhuv.n bhariy sayvattihi.n,
gay jalrilli paDilliy titthihi.n||
dhavliy dhavalsa.nkhsa.nkaasihi,
sohahi sarahtiir sa.nkaasihi।
.na.immal.na.iir sarihi.n, pavha.ntihi.n,
taD reha.nti viha.ngampa.ntihi.n||
paDi.mbi.mb.u darsijja.i vimlihi,
kaddambhaaru pamukki.u salilihi।
sahmi .n ku.nj saddu saryaagami,
marmi maraalaagami.n hu taggami||
jhijjha.u.n pahiy jalihi jhijjha.ntihi,
khijja.u.n khajjoyahi.n khajja.ntihi।
saaras sarsu rashi.n ki.n saarasi!
mah chir ji.n.n dukkhu ki.n saarasi||
.na.iTThur karu.na.u saddu ma.namahi lav,
daDDha mahil haa.i gayamhilav।
im ikkikkah karu.n bha.na.ntah,
pahiy .n ku.i dhiirav.i kha.na.ntah||
achchhahi jih sannihi ghar ka.ntay,
rachchhihi ramhi ti raasu rama.ntay।
karivi si.ngaaru vivih aahar.na.ihi.n,
chittavichittahi.n ta.na.u pa.ngur.na.ihi.n||
tilu bhaalayli turakki tilakkiv,
ku.nkumi cha.nd.na.i ta.na.u chachchakkiv।
sora.nDhi.n kari liyhi phira.ntihi,
divv ma.na.oharu ge.u gira.ntihi||
dhuuv diti gurubhatti-sa.ittihi,
go.aasa.na.ihi.n tura.ng chalatthihi।
ta.n jo.ivi ha.u.n .na.iy uvvinniy,
.na.ey sahiy mah ichchha unniy||
ta.u pikkhiy disi ahiy vichittiy,
.na.aay hu.aasa.na.i ja.na.u pakkhittiy।
ma.na.i pajjaliy virah jhaalaavali,
.na.ndi.na.i gaah bha.na.iy bhamraavali||
sa.nksaay .navabbhis suddh gale,
dhayraTTha-raha.ng rasa.nti jale।
ga.i da.nti chamakkari.na.n pavra.n,
saryaasiri .na.evar jhii.n sara.n||
aaso.e sar.i mahaasiriihi payakhlir veyaviyDaa.e।
saarasi rasi.uu.n sara.n pu.narutt ruyaaviya dukkha.n||
sasijunh nisaasu susohiyya.n dhavla.n,
vartu.ngapyaar ma.na.oharya.n amla.n।
piyvajjiy sijj lula.nt pamukkar.e,
jamkuTT sarichchh vihaavi ha.e sar.e||
achchhahi jih naarihi.n nar ramir.i,
soha.i sarah tor tih bhamir.i।
baalay var juvaa.n khilla.ntay,
diisahi.n ghari ghari paDah baja.ntay||
daaray ku.nDvaal ta.nDav kar,
bhamhi ratthi vaaya.ntay sundar।
sohahi sijj taru.na.i ja.n satthihi,
ghari ghari ramiyad reh palatthihi||
di.ntiy .na.isi diivaaliy diivay,
.navassireh saris kari lii.ay।
ma.nDhi bhuv.n taru.n jo.ikkhahi.n
sahiliy di.nti salaa.iy akkhihi.n||
kasi.na.mbrihi.n vihaavih bha.ngihi.n,
kaDDhiy kuDil a.na.egatra.ngihi.n।
miy.na.aahi.n mayvaTT ma.na.ohar,
chachchiy chakka vaTT payohar||
a.ngi a.ngi gha.na.u ghusi.na.u vilatta.u,
.na.e ka.ndapp sarihi visu khitta.u।
sajji.u kusumbhaaru siisovari,
.na.n cha.ndaTThu kasi.nagha.nagovari||
jhasuru kapuur bahuluu muhi chhuddha.u,
.na.n pachchuusihi di.napahu buddha.u।
rahsuchchhali kiira.i paasaaha.n,
var ray ki.nki.na.iihi.n sijjaasa.na||
imi kivi keli karhi sa.npunniy,
ma.i pu.na.u ray.na.i gamiy uvvinniy।
achchha.i ghari ghari gii.u ravanna.u,
ikku samaggu kaTTh mahu dinna.u||
pu.n pi.u samri.u pahiy! chiragga.u,
.na.iyam.na.i jaa.na.i tahvi suuragga.u।
gha.n jalbaahu bahul milhevi.na.u,
paDhiy aDil ma.i vatthu tahevi.na.u||
.na.isi pahraddhu .na.ey .na.ndiiya.i,
piy kah ja.npirii u.na.ndiiya.i।
ray .na.imisiddhu addhu .na.ndiiya.i,
biddhii kaamatatti .na.n diiya.i||
ki tahi desi .nahu phur.i junh .na.isi .na.immal cha.ndah,
ah kalar.u n ku.na.nti ha.ns phal sevi ravi.ndah।
ah paaya.u .nahu paDh़i ko.i sulliy pu.n raa.i.n,
ah pa.nchmu .nahu ku.na.i ko.i kaavaaliy bhaa.i.n।
mahmah.i ahav pachchuusi .nahu osasittu gha.n kusumabhru,
ah mu.na.i.u pahiy! a.narasi.u pi.u sar.i sam.i ju n sar.i gharu||
- पुस्तक : संदेश रासक (पृष्ठ 179)
- रचनाकार : अब्दुल रहमान
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1991
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.