वसंत-वर्णन (एक) : रामचरितमानस
wasant warnan (ek) ha ramacharitmanas
बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी॥
कदलि ताल बर ध्वजा पताका। देखि न मोह धीर मन जाका॥
बिबिध भाँति फूले तरु नाना। जनु बानैत बने बहु बाना॥
कहुँ-कहुँ सुंदर बिटप सुहाये। जनु भट बिलग-बिलग होइ छाये॥
कूजत पिक मानहुँ गज माते। एक महोख ऊँट बिसाराते॥
मोर चकोर कीर बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी॥
तीतिर लावक पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज बरूथा॥
रथ गिरि सिला दुंदुभी झरना। चातक बंदी गुन गन बरना॥
मधुकर मुखर भेरि सहनाई। त्रिबिध बयारि बसीठीं आई॥
चतुरंगिनी सेन सँग लीन्हें। बिचरत सबहिं चुनौती दीन्हें॥
तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ॥
मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ॥
विशाल वृक्षों में लताएँ उलझी हुई हैं, मानो अनेक प्रकार के तंबू तान दिए गए हैं। केला और ताड़ ये सुंदर ध्वजा और पताका हैं। इन्हें देखकर, वही नहीं मोहता, जिसका मन धीर है। अनेक वृक्ष नाना प्रकार से फूले हुए हैं। मानो वर्दी धारण किए हुए बहुत-से धनुर्धर हैं। कहीं-कहीं सुंदर वृक्ष शोभा दे रहे हैं, मानो योद्धा लोग अलग-अलग होकर छावनी डाले हैं। कोकिल कूज रहे हैं, वे मानो मतवाले हाथी हैं। ढेक (कुलंग) और महोख पक्षी मानो ऊँट और खच्चर हैं। मोर, चकोर, तोते, कबूतर और राजहंस मानो सब सुंदर ताज़े घोड़े हैं। तीतर और बटेर, ये पैदल सिपाहियों के समूह हैं। कामदेव की सेना का वर्णन नहीं हो सकता। पर्वतों की शिलाएँ रथ और जल के झरने नगाड़े हैं। पपीहे भाट हैं, जो गुणों का वर्णन करते हैं। भौरों की गुँजार भेरी और शहनाई हैं। शीतल, मंद और सुगंधित हवा मानो दूत है। इस प्रकार चतुरंगिणी सेना साथ लेकर कामदेव मानो सबको ललकारता हुआ विचर रहा है।
हे भाई! काम, क्रोध और लोभ, ये तीन बड़े प्रबल दुष्ट हैं। ये विज्ञान के धाम मुनियों के भी मनों को क्षण-भर में क्षुब्ध कर देते हैं।
- पुस्तक : श्री रामचरितमानस (पृष्ठ 461)
- रचनाकार : तुलसी
- प्रकाशन : लोकभारती
- संस्करण : 2017
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