राउलवेल
[1][*] nam. sidh ( 4 ) [bhya. ||
रोचक तथ्य
रोडा कवि द्वारा रचित 'राउलवेल' एक शिलांकित रचना है। यह हिंदी भाषा की नखशिख परंपरा का आरंभिक ग्रंथ है। प्रस्तुत पाठ इस रचना की अविकल प्रस्तुति है। परिवर्तन इतना भर किया गया है कि कोष्ठकों में दी गई संख्याएँ शिलालेख की पंक्तियों की हैं जो इस पाठ में उनके प्रारंभ में दे दी गई हैं। जहाँ शब्द मिट गए थे, उनके स्थान पर एकाधिक योजक चिह्न लगा दिए गए हैं।
[१][ओउम्] नमः सिध (वे:) [भ्यः॥]
रोड (डे) राउल वेल बखाणा (णी)।
जइ - - - इ आपणु ज [णी॥]
जा (जो) जेम्व जाणइ सो तेम्व बखाणइ।
हासे (से) तोसे (सें) राजइ राणइ॥
----------- [।] - - - - - [२] भा[ल]उ भावइ।
आंखिहिं काजल तरलउ दीजइ। [आ]छउ तुछउ फूलु- - जइ॥
अहरु तंबोलें मणु-मणु रातउ। सोह देइ कवि आन - - - [॥]
------------ [।] - [३] तुम - स तम्वहीं मोहंथि॥
जाला कांठी गलइ सुहावइ। अनु कि -- इं ताकरि [पां] वइ॥
एहइ तरुणिहुँ माण्डणु भालउ। जं जसु रूचइ सो ------- [॥]
------------ [।] - - [४] लो तो --- मांडीजइ॥
रातऊ कंचआ अति सुठु चांगउ। गाढउ बाधउ - - - इ आंगउ ॥
- दुहां पहिरणु भालउ भावइ। तासु सोह कि कछडा पांव [इ॥]
------------ [।]----- [म] [५] णु मणु --॥
विणु आहरणें जो पायेन्हु सोह। आन वनां तहं मोहि अति कोह॥
अइ[सी] बेटिया जा घरु आवइ। ताहि कि तूलिम्ब कोऊ पांवइ॥
[ ॥ ०॥०॥०॥ ]
------------ [।] -[६] हुं वेस न [ण?]- क देखसि॥
वलिअहि बाख लिअहि जे चांगिम्ब। ते वानतु को - - वी (?) वागिम्ब॥
- अहि आंतु जें विअइल फूल्लें। अछउ ताउं कि तेंह चें बोल्लें॥
--- ------[i]- - - - आ [७] छहिं गोह॥
का[नि]हिं धडिवनहं चि जे रेख। ते ची (चि) न्तवंतहं आनिक ओख॥
-- कचि कांठी कठिहि सोहइ। लोकहं ची दिठि मांड चि खोहइ॥
आंगिहिं ला -------[i]----- ------- डा॥
पडिह [८] कांचू वोडा लाठा। [अ] निकु वानू जो एथु धेठा॥
आविलु काछडा वढ गाढा। आनिकु जोवण ऊ [ज?] रु थाढा॥
हाथिहिं रीठे ऊजल लान्ह। जी पुडि तागे आविल सान्ह॥
---- पाटी गाढी। जणु काम्बे [९] ---- ली माढी॥
पाइहिं पाहंसिया निरु चांगा। लोणचि आनि [क] मांडी आंगा॥
गोल्ले आ[नं]दिअ तुझचि देसु। आनिक तेंह चा तो वेस॥
चा वल भण हुणि तो मेढी झांखइ। ते आपुली गम्बारिम्ब आख [१०]इ॥
अइसी - - - तरुणिम्ब मांडी। पातली को भाउअ छांडी॥
- - कचि अइसी राउल सो [ही]। देखत तोही मयणुव मोही॥
[ ॥ ०॥०॥०॥ ]
एहु कानोडउं का इसउ झांखइ। वेसु अम्हाणउं ना जउ देख[११]इ॥
आउंडउ जो राउ [ल सो] हई। थइ नउ सो एथु कोक्कु न मोहइ॥
डहरउ आंखिहिं काज [ल] दीनउ। जो जाणइ सो थइ नउ वानउ॥
करडिम्ब अनु कांचडिअउ कानहिं। काई करेवउ सोहहिं आ [१२] नहिं॥
गलइ पुलूकी भ[विइ?] कांठी। कासु तणी साहर इन ढिठी॥
लांवझ लांवउ कांचू रात[उ]। कोकु न देखतु करइ उमातउ॥
थणहि सो ऊंचउ किअउ राउल। तरुणा जोवन्त करइ सो वाउल॥
वाह [१३] डिअउ सो म्वालउ दीहउ। [म्वाल] उ आथि न तहुं जणु चाहउ॥
[हा]थहिं माठिअउ सुठु सोहहिं। [ते] थु खूता जण सयलइ चाहहिं॥
पहिरण फरहरें पर सोहइ। राउल दीसतु सउ जण मोहइ॥
झुणि नेउरा [१४] णी कान सुहावइ। अरो (?) रक- -कासु न भावई॥
हांसगइ जा चालति अइसी। सा वाखर णहुं राउल कइसी॥
जहिं घरे अइसी ओलगं पइसइ। तं घरु राउल जइसउँ दीसइ॥
[ ॥ ०॥०॥०॥ ]
[१५] केहा टेल्लिपुतु तुहुं झांखहि। अ - - - दु वेहु तुहुं आख[हि]॥
वेहु एक्कु सो एथ वन्निज्जइ। [जो?] अक्खंदहं ही भिज्जइ॥
अड्डा केह पाहु जो वद्धा। सो प्पर तेहा गोरीं लद्धा॥
चंद सावाणा टोहा किय्यइ। जें महुं [१६] एक्केणवि मंडिय्यइ॥
अंघिहिं कय्यल डहरा दित्ता। जो [नि]हालि करि मयणू मत्ता॥
कंय्यडिअहि सोहहिं दुइ गन्न। म(मं)डन संडन डहि परे अन्न॥
कंढी कंढि जलाली सोहइ। एहा तेहा सउ जणु मोह [१७] इ॥
आधूघाडें थणहिं जो कंय्यू। सो सन्नाहु अणंग हो नं -॥
[कं]य्यू विय्ययहिं जे थण दीसहिं। ते निहालि सव वत्थु उवीसहिं॥
गोरइ अंगि वेरंगा कंय्यू। संझहि जोन्हहि नं संगउं हू॥
पहिरणु घाघरेहिं जो केरा। कछ [१८] डा बछडा डहि पर इतरा॥
सूथना झि क -- इला प[हि]रणु। पाखइं पाखउ धावइ तसु जणु॥
एही वेहु सुहावा टेल्ल। आन्न तु संदा डहि परइ वोल्ल॥
एही टक्किणि पइसति सोहइ। सा निहालि जणु मल म[१९]ल चाहइ॥
[ ॥ ०॥०॥०॥ ]
कीस रे वंडिरो टाक तु [वो]ल[सि।] राहू आगें वानतु भूलसि॥
तंई की कतहू वेस रे दोठे। जेहर तेहर वानसि धेठे॥
गौड सुआणु स तइं कत दीठे। ते देखि वेस कि भावंथि मीठे॥
ते (ये?) [२०] डेन्हु वान्हु केसं ज ल डहिम्ब। खोंपवली एक हु रे---सम्॥
खोंपहि ऊपरं अम्वेअल कइसे। रवि जणि राहूं घेतले जइसे॥
दिठहुल फूल अम्हारे म्वाझथि। ते देखि तरुणे सावइ मूझथि॥
तूछे फूल तारे मण [२१] हारे। रयणिमुहां जणु गणिए तारे॥
रे-रे वर्व्वर देख रे तूं चा[हि]। तारि निलाडी सरिसी काहु॥
भउहीं तु रूरीं देखु वर्व्वर कइसीं। ताहि काम्ब करीं धणु अडणीं जइसीं॥
अरे-अरे वर्व्वर देखसि न टीका। चांदहि ऊपर एह [२२] भइ टीका॥
वेटुला टीका केहर (भा]वइ। मुह ससि ओलगं च - नावइ॥
विणु वनवारां अछण नो वारसि। बुद्धि रे वंडिरो आपणी हारसि॥
कानन्हु पह्निले ताडर पात। जणु सोहइं एवं सोह रे पात॥
गूआ रांगे द [२३] सण रे राते। आंट कुडीपुत त -- माते॥
कांठहि मांडणु पा[चि?] लर तागु। सो लहि मयणहि एवं भैअल लागु॥
मासें सोना जालउ कीजइ। मोत्ता सरसो हुतें हू हसीजइ॥
गंठिआ तागउ गलेहि सो भूस[२४]णु। जो देखि वंडिरो को न [मू?] झइ जणु।
सूतु तरीअन्हु करउ [जो] हारु। सो देखि हारन्हु भउ अवहारु।[।]
थणहर माझें जो हारु सुतेरउ। सोहन्हु सवन्हु सोए कुज ठेरउ॥
पारडी आंतरे थणहरु कइसउ। [२५] सरय जलय विचं चांदा जइसउ॥
सूतेर हारु रोमावलिं कलिअ [उ]। जणि गांगहि जलु जउणहि मिलिअउ[।]
पैह्निअल वाही जे चंदहाईं। वीजेर चाँदहि ते चंदहाई॥
आंगहिं मांडणु अंगेर उजालु। कांठी [२६] वेंटी वंडिरो आलु॥
काछां [पै] ह्नरण केरि ज सोह। आन सराहंत सुणि मोहि अति कोह॥
वि उढण सेंदूरी सेलदही कीजइ। रूउ देखि तारउ सब जणु खीजइ॥
धवलर कापड ओढिअल कइसे। मुहससि [२७] जोन्ह पसारेल जइसे॥
अइसो उवेसु जो गउडिन्हु केरउ। छाडि सो वान त दिठ सवु तोरउ।[।]
जहर रूचइ तेहर बोलु। तारे वेसहि आथि कि मोलु॥
अइसी गउडि ज राउलें पइसइ। सो जणु ला[२८]छि मांडेउ दीसइ॥
[ ॥ ०॥०॥०॥ ]
गौड तुहुं एकु को पनु अउरु वर क [रि?]
को तइं सहुं भइं बोलइ।
ज पुणु मालवी उवेसु हि आवंतु
काम्वदेउ जाउं आपणाह हथिआर हु भूलइ।
इहाँ अम्हार [२९] इ दुभगी खोंप करिउ वाझइ।
तहि सारिखउं कहा इउं आयि एउ कि सी[झ]इ।
खोंपहि ऊपर सोलडहउ दीनउ वानु तें किसउ भावइ।
जिसउ सिंदूरिअउ रजायसु काम्वदेवह करउ नावइ।
नि [३०] लाडु रतु रूरउ सुपवाणु न सान्ह उंन ऊंचउ।
सो देखिउ आठम्विहि करउ चां[दु] इसउ भावइ।
केर एहु ओडिअउ जूनउ ठेंचउ।
भउंह हुं र दुई तु रूरीहिं सान्हीहिं आडाहं आंखिहिं करइं गुणइं
ज [३१] इसउ काम्व करउ [ध]णुहुं चडावियउ।
निडालि टोकें तु रूरे कीएँ तें काम्वह अ-य-
संकरी हि भालिहि करउ काजु पावियउ।
सान्हाहं पुडहं नाकु तु रूरउ सुरेखु।
सोइर वानाहं सबहं ऊतरिअउ [३२] अइसउ करिउ तुहुं (?) लेखु ।
आंखिर फाटा तीखा ऊजला तरला ते वानति जीभ इ[सी?] खूझइ।
तइसउ हथिआरु पाविउ काम्वदेउ जगही कोई करिसी
अइसउ वृहस्पति ही नउ मू (सू?)भइ
[३३] आंखिहिं र तु रूरउ काजलु दीनउ कइसउ।
जणु चाखुहु करइं भयइं कियउ - - - जिसउ।
पूनिवहि करउ चांदु फाडिउ हरिणु पाखइ घालिउ
दुई कपोल जिसा किआ।
ते देख तहं [३४] सवहं तरुणाहं
अपांविवे करीं खणुसइं धस-धस पडहिं हिआ।
कनवासहीं कानहीं वा[न?]इ करउ खुटउ बोलु।
कें कें केतउ न खपिअउ एहि जगी (गि?) आथि न मोलु।
तेन्हर पइह्निया धडिव[३५]न किसा भावंथि।
[ज]णु पूनिव हि पूनिव हि करा चाँद कोडइं तहि करउ
सुहावउ बोलु सुणण का[ज] फेडि उआया नावंथि।
तेहि करइ तलि लईं उपइलें ओठइं सकवि सोह लाधी।
ज वींवी फलहं(?)प[३६]वालाहं असो[अ] पल्लवहं तें तूसिउ विलषी।
समुदाइ कज मुह करी सोभ सजइ
कोइ प [यह्न?] णु हरइ त उपमान करहुं।
वूधि आपणी अछइ स कूडी वानणी
त। हि करी करिउ सहीं अवहरहुं।
[३७] तं एकावलि - - इ एक वाधी सइ र इसी भावइ
जणु मुह चंदु ओलग णहं नखत वाल सतावीस
हा - री आई अइसउ नावइ।
थण र पहुला ऊंचा वाटूला पीणा
सोनाह करा मंगल कलस जिसा भा [३८] वहिं।
आनु कि काम्वदेवह कराह धरह
वारि ओडु तास सोह पावहिं।
तिवलिहि मोझि रोमराइ स किसी धरइ।
ज सोहहि करइ पाखइ दुहुं आधहं जूझ तहं निवाडउ करइ।
तहं मांडणु सात [३९] - -उ मुणाणि हुं
मोती हुं करउ एकु जि हारु॥
स सोह देख तहं अइसउ भावइ
अणसारउ अ[णसार]उ हुअउ एहु संसारु।
त पुण जबहीं तें हाथहीं पायहीं पइह्निआ सोना केरा चूड़ा।
स देखि [४०] तुम्हा [रा] जे वेस ते सब भावहिं कूड़ा।
तें रत (त्त) इसी वोड वाही पडि करी पइह्री ज कांचुली
सइ र आन सोह कवि वहइ।
अरे काम्वदेवइं सनाहु कियउ
त एवं तुम्ह नहीं छोडि कउ इसउ तिहु [४१] [वन?] ही कहइ॥
पइह्नणहं निरी पइह्निआह काछडइं सहुं ज सोह
स कि कउण वेसु पांवइ।
आ - चंग – थि वि अरे गौड हो गोल्ला हो
बोलउ जो जसु भावइ॥
तें पुणु - - - - टी एक आवलि।
[४२] - - व ताहि करी सोह को पाम्वइ।
जबाध ताह काम्वदूमह आलवालु जइसी भावइ॥
पायहिं र रतूपल – जिआ।
जे लोकहिं लाछिहि करउ निवासु भणिउ [सु] णि [आ]॥
- - - - वाटुलाहं ऊजला [४३] [हं]
--- करी ज - - -।
तेइं र सबहीं वेसहं करी ज लाछि स अवहरी॥
कापडहि र करउ ज गोरी तहि सिंदू[री] हि वेसु।
ज साम्वली तहि र पाटणी हि करउ॥
आ - मं - - - - - - - - - हं।
को स सोभ धर [४४] उ --- छाय तेइं पर लाधी।
जहिं आवंति रति आपणइ हिअइ अति सुठु खूधी॥
तुम्हइं स - - - ल तुम्हहिं सरिसउ बोलहिं को जूझइ।
म - - - - - - - - - - -
आ [४५] नु - - - इ वानइ जो वथुं काजह मांझ बूझइ॥
एह इसी सुवेस जह आवउ पइसइ
- [रा?] उलु वूचइ।
अउरु भाणउ को क - - - - हु त - - - - - रूच [४६] इ[॥]
॥ ०॥०॥०॥
रोड राउल वेल वखा[णी।]
[सा]तहं भासहं जइसी जाणी॥
एउ निसुणत - - त - - - -।
- - - उ [?] हासें तोसें सोइ [॥]
- - - - - - - इ [४७] - - -[।]
ध - - - - - - - - - - - - [॥]
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