Font by Mehr Nastaliq Web

परत तुषार भार कांपै हिय हार-हार

parat tushar bhaar kampai hiy haar haar

राम

राम

परत तुषार भार कांपै हिय हार-हार

राम

और अधिकराम

    परत तुषार भार कांपै हिय हार-हार,

    रजनी पहार दिन आग जैसे फूस की।

    द्वार-द्वार परदे परे हैं भरे तूलन के,

    भीतर सँवारि धरे पलँगी जलूस की॥

    रामकबि कहत हनत शीत अब तब,

    आवरे सुजान तेरी छाती आबनूस की।

    जैसे तैसे कान्ह षट्मास लौ ब्यतीत कर्यो,

    निपट जुबाल भई काल रैनि पूस की॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : षट्ऋतु हज़ारा (पृष्ठ 296)
    • संपादक : परमानंद सुहा
    • रचनाकार : राम
    • प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
    • संस्करण : 1894

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए