सुंदर सुघर मृदु आखर मधुर तर
sundar sughar mridu akhar madhur tar
सुंदर सुघर मृदु आखर मधुर तर
मनोहर मोदकर गुन सूँ समेत है।
काहू कविराज की आवाज़ है अमृत रूप
जामैं भारी भारती कलोल मोल लेत हैं।
ताहि सुन कूर कहैं हूँ तौ मूल समझ्यौ न।
निज दोष और माहि देबै कौ सचेत है।
देवीदास जैसे ढीली चोली देखि सूकी नारि
हिय कौ ने खोजै दरजीहि दोष देत है॥
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि निंदकों को आँगन में कुटिया बनाकर अपने निकट रखा जाए जिससे बिना साबुन और पानी के स्वभाव निर्मल होता रहेगा।
पास स्थित निंदक दोष निकालेगा और निन्द्य व्यक्ति अपना परिमार्जन करता जाएगा। उस तरह वह बिना साबुन और पानी के ही निर्मल हो जाएगा।
- पुस्तक : राजनीति के कवित्त (पृष्ठ 85)
- संपादक : महेंद्रनाथ दुबे
- रचनाकार : देवीदास
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1999
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