सुक्ख में मगन और दुख में
sukkh me.n magan aur dukh me.n
सुक्ख में मगन और दुख में दिलगीरी आवै,
मरत है बड़ाई को छोटाई की अचाहना।
अस्तुति में फूलै औ क्रोध करै निंदा सुनि,
मित्र सेती भाव करै दुष्ट से अभावना॥
संपति में खुसी औ बिपति बिलाप बड़ा,
पूजै में कष्ट है पुजावने की कामना॥
पलटू दास चिंता ज्यों चरत है सरीर कहै,
बिगरी फ़क़ीरी बेकूफ़ी से ना बना॥
सुख में प्रसन्न हैं, दुख में दुखी, प्रशंसा पाने के लिए जान देते हैं, लघुता नहीं चाहते, अपनी स्तुति पाकर फूले फिरते हैं और निंदा पाकर क्रोध करते हैं। मित्र से मोह है, वैरी से द्वेष है, संपत्ति पाकर प्रसन्न हैं और विपत्ति आने पर फूट-फूट कर रोते हैं। दूसरों का सत्कार करने में दुख मानते हैं, किंतु अपने को पुजवाने के लिए बड़ी इच्छा है। जैसे पशु फसल चर ले, वैसे उनके शरीर को चिंता चर रही है। पलटू साहेब कहते हैं कि ऐसी स्थिति में फ़क़ीरी नष्ट है। मूर्खता रखकर त्याग नहीं बनता।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 382)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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