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पूरन प्रेम को मंत्र महा पन

puuran prem ko ma.ntr maha pan

घनानंद

घनानंद

पूरन प्रेम को मंत्र महा पन

घनानंद

और अधिकघनानंद

    पूरन प्रेम को मंत्र महा पन जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ।

    ताही के चारु चरित्र विचित्रनि यौं पचिकै रचि राखि बिसेख्यौ।

    ऐसो हियो हितपत्र पबित्र जु आन-कथा कहूँ अबरेख्यौ।

    सो घनआनंद जान अजान लौं टूट कियौ पर बाँचि देख्यौ॥

    मैंने अपने प्रिय के निकट हृदय-रूपी प्रेम-पत्र पढ़ने और जैसा वे उचित समझें तदनुसार आचरण करने के लिए भेजा। उन्होंने उसे बाँचा तक नहीं, प्रत्युत बिना पढ़े ही सुजान होते हुए भी अजान की भाँति लेकर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। यदि वे उसे बाँचते तो उन्हें पता चलता कि उस प्रेम-पत्र में पूर्ण प्रेम का मंत्र लिखा था। मंत्र को लिखने का जैसा नियम है, उस नियम से वह भली भाँति और शुद्ध रूप में लिखा गया था। मंत्र में कुछ और नहीं था, उन्हीं के मनोहर और अनुपम चरित्र उसमें लिखे थे जो बड़े परिश्रम से उसमें और विशेष सावधानी से रच-रचकर प्रस्तुत किए गए थे। उस प्रेम-पत्र की ऐसी पवित्रता थी कि उसमें किसी दूसरे की कथा किसी प्रकार अंकित नहीं हुई थी, केवल प्रिय की ही सर्वत्र प्रशस्ति थी। ऐसे पत्र को भी फाड़कर उन्होंने न्याय नहीं किया, अनुचित कार्य कर डाला।

    स्रोत :
    • पुस्तक : घनानंद कवित्त (प्रथम आनन) (पृष्ठ 325)
    • संपादक : चंद्रशेखर मिश्र ‘शास्त्री’
    • रचनाकार : घनानंद
    • प्रकाशन : वाणी वितान
    • संस्करण : 1972

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