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जीव की दया जेहि जीव ब्यापै नहीं

jeew ki daya jehi jeew byapai nahin

धरनीदास

धरनीदास

जीव की दया जेहि जीव ब्यापै नहीं

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    जीव की दया जेहि जीव ब्यापै नहिं,

    भूखे अहार प्यासे पानी।

    साधु से संग नहिं सब्द से रंग नहिं,

    बोलि जानै मुख मधुर बानी॥

    एक जगदीस को सीस अरपै नहिं,

    पाँच पच्चीस बहु बात ठानी॥

    राम को नाम निज धाम बिस्राम नहिं,

    धरनी कह धरनि मों धृग सो प्रानी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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