रात कुविजा सों रमि प्रात ब्रजराज बीर
raat kuwija son rami praat brajraj beer
पंडित भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
Bhairavprasad Vajpeyi 'vishal'
रात कुविजा सों रमि प्रात ब्रजराज बीर
raat kuwija son rami praat brajraj beer
Bhairavprasad Vajpeyi 'vishal'
पंडित भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
और अधिकपंडित भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
रात कुविजा सों रमि प्रात ब्रजराज बीर,
मौज भरे हौज में अन्हात छबि बर में।
कज्जल की कालिमा कछत कर कंचन सों,
जौन चख चुंबन में लाग्यो री अधर में॥
भनत विशाल जाकी उपमा बिचारी बहु,
लागी अति प्यारी तौ न भाषत अमर में।
मानों तजि शंक भरि अंग में गुराइनि को,
धोवत कलंक है मयंक मानसर में॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 523)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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