कुटिल! गाफिल होत मन न इतै देत
kutil! gaphil hot man na itai det
कुटिल! गाफिल होत मन न इतै देत,
काहे अचेत भए जरत है भरम सौं।
और न कोउ सुहाउ प्रभु के सरन आउ,
औसर महा चुकाउ समझ लै मन सौं॥
काहे कौं मरत वहि श्रीवृंदावन बस रहि,
सरस साहिब कहि लाड़िली ललन सौं।
तन-धन सब गयौ काम-क्रोध-लोभ नयौ,
चौंक परयौ तब जब काम परयौ जम सौं॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 290)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : सरसदेव
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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