गहकि गहकि घन उठत हैं चहूँ धा तैं
gahaki gahaki ghan uthat hain chahun dha tain
गिरिधर पुरोहित
Giridhar Purohit
गहकि गहकि घन उठत हैं चहूँ धा तैं
gahaki gahaki ghan uthat hain chahun dha tain
Giridhar Purohit
गिरिधर पुरोहित
और अधिकगिरिधर पुरोहित
गहकि गहकि घन, उठत हैं चहूँ धा तैं,
बीचु-बीचु-बीच चपलाइ चमकति है।
पीऊ-पीऊ-पीऊ नांव, चात्रिक न तियागै,
मोर सोर करें कोउ नांहि हटकति है।
कोकिला बगीचा में ते, नैक हूँ न न्यारी होति,
गिरिधारी कुहू-कुहू, कुहू-कुहू कहति है।
बरखा तुम्हारे बिनु, बैरिन सी लागत है,
प्रानन प्यारी क्यों हूँ, सहि न सकति है॥
- पुस्तक : शृंगारमंजरी (पृष्ठ 98)
- रचनाकार : गिरिधर पुरोहित
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 1982
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